Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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सम्बन्ध केवल 'संयोगान्त लोप' में ही होता है । यहाँ पर कैय्यट' और सिद्धान्त को मुदीकार दीक्षितजी का मत समान है क्योंकि 'संयोगान्तस्य लोपः इस सूत्र से 'झाल' पद की अनुवृत्ति से संयोगान्त 'इल' का ही लोप होता है अतएव भटोजी' दीक्षित ने लिखा है - 'बालोझलि 2 'बलग्रहणमप्य कृष्यसंयोगान्तस्य झालोलोप विधानात' 'बहिरङ्गलक्षणत्वात् वा' इस वार्तिक से भी यण का प्रतिषेध सम्भव हो जाता है । इसका यह भाव है 'यणः प्रतिषेधो वाच्यः ' यह वार्तिक करने की आवश्यकता नहीं है । यण के बहिरश होने से असिद्ध हो जाने के कारण संयोगान्त लोप नहीं होगा। जैसा कि महाभाष्यकार ने कहा है 'यणादेश बहिरङ्ग' है लोप अन्तरग है, अन्तरग की दृष्टि बहिरङ्ग अ सिद्ध होता है ।' पददय और वर्णद्वय के सम्बन्धी होने से यणादेश बहिरग है । पदद्वय मात्र सम्बन्धी होने से लोप अन्तरङ्ग है । असिद्ध बहि रशमन्तरछे' यह परिभाषा छठवें अध्याय के सूत्र पर ज्ञापित है अतः उसकी दृष्टि में त्रैपादिक अन्तरङ्ग शास्त्र असिद्ध हो जाता है। फिर भी यथोदेश पक्षा में
पादिक कार्य में भी इस परिभाषा की प्रवृत्ति मानी गई है । घोषार कार के मत से कार्यकाल पक्षा में भी पा दिक अन्तरग कार्य में भी इस परिभाषा की प्रवृत्ति मानी गई है । अतः यथोदेश और कार्य का दोनों पक्षों में संयोगान्त यण् लोप का प्रतिवेध सम्भव हो जाता है अत: 'यणः प्रतिषेधों वाच्यः ' यह वाक्य अपूर्व नहीं है अपितु 'यणः प्रतिषेधो व्याख्येयः' इस अर्थ का प्रतिपादक है ।
।. प्रौढ मनोरमा असन्धि प्रकरणम् , पृष्ठ 131. 2. टाध्यामी 8/2/26.