Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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होगा उस समय समकाल में प्राप्त गुण को बाँधकर वृद्धि चरितार्थ हो जाती है । अतः जब अक्षा शब्द का उह शब्द के साथ समाप्त होगा तो इस पक्ष में पूर्वकाल में प्राप्त अन्तरङग गुण वृद्धि को ही बाध लेगा। दूसरी बात यह है कि न्यास कार के विग्रह पक्षा में अक्षा उह' इस समस्त समुदाय से 'इनि' प्रत्यय करने पर '3HET ऊहिनी' इस शब्द में 'ऊहिनी' शब्द अनर्धक हो जाएगा । अतः वृद्धि की प्राप्ति न हो सकेगी क्योंकि अर्थवद ग्रहण परिभाषा के बन से सार्थक ऊहिनी शब्द परे रहते ही वृद्धि का विधान होता है । यद्यपि सिद्धान्त में अ६ शब्द का ऊहिनी शाब्द के साथ समाप्त करने पर भी ऊहिनी शब्द अनर्थक ही है क्योंकि समाप्त में एकार्थीभाव माना जाता है । समास . क पद-विशिष्ट अर्थ के अवाचक होने से अनर्थक होता है तथापि इप्स पक्ष में 'ऊहिनी शब्द में कल्पित अर्थवत्ता लेकर वार्तिक की प्रवृत्ति हो सकती है । पूर्वपक्षा में तो समास के बाद 'इनि' प्रत्यय होने पर 'ऊहिनी' शब्द में कल्पित अर्थवत्ता सम्भव नहीं है । अत: ४६ शब्द का ही ऊहिनी शब्द के साथ समास साधु है । इस प्रयोग णत्व 'पूर्वपदात संज्ञायामगः '' इस सूत्र से 'गत्व' हुआ है । उपर्युक्त व्याख्यान से यह निष्कर्ष निकलता है कि अET शब्द का ऊहिनी शब्द के साथ ही समास होगा। यह ऊहिनी इनि प्रत्ययान्त हो ना णिनि प्रत्ययान्त हो । उसी प्रकार अक्षा शब्द भी द्वितीयान्त हो, तृतीयान्त हो अथवा कठयन्त हो इन तीनों मतों को दिखाया जा चुका है । यह वार्तिक भी अनन्यथा सिद्ध वृद्धि का विधान करने के कारण वाचनिक ही है । उसी प्रकार से
1. अष्टाध्यायी 8/4/3.