Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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वार्तिक पाठ स्वतंत्र रूप से सम्प्रति उपलब्ध नहीं होता। महाभाष्य से भी का त्य। यन के वार्तिकों की निश्चित संख्या की प्रतीति नहीं होती क्योंकि उसमें बहुत अन वार्तिककारों के वचन भी सग्रहीत है । भाष्यकार ने प्रायः उनके नाम का निर्देश नहीं किया। कात्यायन के वार्तिकों को सामान्यतया चार भागों में विभक्त किर जा सकता है - 1. व्याख्यान वार्तिक, 2. प्रयोजन वार्तिक, 3. प्रत्याख्यान वार्तिक, 4. विधान वार्तिक ।
वार्तिक नाम से व्यवहृत ग्रन्थों के दो प्रकार - एक वार्तिक वे हैं, जिनकी रचना सूत्रों में हुई, और उन पर भाष्य रचे गए । इसी लिए कात्यायनीय वार्तिक वार्तिकों के लिए भाष्यसूत्र शब्द का व्यवहार होता है । यह प्रकार केवल व्याकरण शास्त्र में उपलब्ध होता है। दूसरे वार्तिक ग्रन्थ वे हैं, जिनकी भाष्यों पर रचना की गई। जैसे - न्याय भाष्य वार्तिक ।
वार्तिकों के भाष्यकार तथा भाष्य का लक्षण
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विष्णुधर्मोत्तर के तृतीय खण्ड के चतुर्थाध्याय में भाष्य का लक्षण इस प्रकार लिखा है -
"सूत्रार्थो वर्ण्यते यत्र वा क्यैः सूत्रानुसार भिः ।
स्वपदानि च वय॑न्ते भाष्य भाष्य विदो विदुः ।। ... अर्थात जिस ग्रन्थ में सूत्रार्थ, सूत्रानुसारी वाक्यों, = वार्तिकों तथा अपने ___ पदों का व्याख्यान किया जाता है, उसे भाष्य को जाने वाले भाष्य कहते हैं ।