Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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व्यक्त होता है कि पाणिनीय सूत्रों पर केवल वृत्तियाँ ही लिखी गई थीं, अतएव ' उनका वृत्तिसूत्र' पद से व्यवहार होता है । वार्तिकों पर सीधे भाष्य ग्रन्थ लिखे गए, इस लिए वार्तिकों को 'भाष्यसूत्र' कहते हैं । वार्तिकों के लिए 'भाष्यसूत्र' नाम का व्यवहार इस बात का स्पष्ट द्योतक है कि वार्तिकों पर जो व्याख्यान ग्रन्ध रचे गए, वे 'भाष्य' कहलाते थे ।
भाष्यकार पत जलि
वार्तिकों पर अनेक विद्वानों ने भाष्य लिखे परन्तु उनके भाष्य पूर्णतया अनुपलब्ध हैं। महामुनि पत जलि ने पाणिनीय व्याकरण पर एक महती व्याख्या लिखी है। यह संस्कृत भाषा में 'महाभाष्य ' के नाम से प्रसिद्ध है। इस ग्रन्ध में भाष्यकार ने व्याकरण जैसे दुरूह और शुष्क सम्झे जाने वाले विष्य को सरल और सरस रूप में प्रदर्शित किया है । अवचिीन व्याकरण जहाँ सूत्र, वार्तिक और महाभाष्य में परस्पर विरोध सम्झते हैं वहाँ महाभाष्य को ही प्रामाणिक मानते हैं । विभिन्न प्राचीन ग्रन्धों में पत जलि को गोनीय, गोणिकापुत्र, नागनाथ, अहिपति, फणिभृत, शेषराज, शेषाहि, चूर्णिकार और पदकार नामों से स्मरण किया है । पत जलि ने महाभाष्य जैसे विशालकाय ग्रन्थ में अपना कि यन्मात्र परिचय नहीं दिया । इस लिए पत बलि का इतिवृत्त सर्वथा अन्धकारमय है । महाभाष्य के कुछ व्याख्याकार गोंणिकापुत्र शब्द का अर्थ पत बलि मानते हैं। यदि यह ठीक हो तो पत जालि की माता का नाम 'गोणिका' होगा परन्तु यह हमें ठीक प्रतीत नहीं होता। कुछ ग्रन्धकार 'गोनीय' को पत जालि का पयाय मानते हैं यदि उनका मत प्रमाणिक हो