Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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पाणिनि ने सम्पूर्ण अष्टाध्यायी की रचना संहिता पाठ में किया था । यद्यपि पाणिनि ने प्रवचनकाल में सूत्रों का विच्छेद अवश्य किया होगा क्योंकि उसके विना सूत्रार्थं का प्रवचन सम्भव नहीं था किन्तु पत जलि ने संहिता पाठ को ही प्रामाणिक माना है । महर्षि पतजलि के अनुसार " पाणिनि ने समस्त सूत्रों का
प्रवचन एकश्रुति स्वर में किया था ।
कैयट ने भी इसका समर्थन किया है किन्तु
है
नागेश भट्ट ने इसका खण्डन किया है । पाणिनि के अन्य व्याकरण ग्रन्थ अधोलिखि 1. धातुपाठ, 2. गणपाठ, 3. उणादिसूत्र 4. लिड्गानुशासन ये चारों ग्रन्थ पाणिनीय शब्दानुशासन के परिशिष्ट हैं ।
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अष्ठाध्यायी के वार्त्तिककार
पाणिनीय अष्टाध्यायी पर अनेक आचार्यों ने वार्त्तिक पाठ की रचना
की. थे । उनके ग्रन्थ वर्तमान समय मैं अनुपलब्ध हैं । बहुत से वार्त्तिककारों के
नाम भी अज्ञात हैं । महाभाष्य में निम्न वार्तिककारों के नाम उपलब्ध होते हैं.
1. की त्यायन, 2. भारद्वाज, 3. सुनाग, 4. क्रोष्टा, 5. बाडव ।
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सर्वप्रथम वार्त्तिक की जानकारी हेतु उसके लक्षण पर विचार करना अनिवा
अनेक विद्वानों ने अनेक प्रकार से वार्त्तिक के लक्षण किए हैं । पराशर
पुराण में वार्त्तिक का लक्षण इस प्रकार से है :
• उक्तानुक्तदुरुक्तानां चिन्ता यत्र प्रवर्तते । तं ग्रन्थं वार्तिकं प्राहुः वार्तिकज्ञा मनीषिणः ॥