Book Title: Laghu Siddhant Kaumudi me aaye hue Varttiko ka Samikshatmaka Adhyayan
Author(s): Chandrita Pandey
Publisher: Ilahabad University
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चतुर्थाचार्य वायु को स्वीकार किया गया है इनका समय 8500 वि0पू0 माना गया है । तैत्तिरीय संहिता 6/4/7 में लिखा है - इन्द्र ने वाणी को व्याकृत करने में वायु से सहायता ली थी। अतः स्पष्ट है कि इन्द्र और वायु के सहयोग से देववाणी के व्याकरण की सर्वप्रथम रचना हुई । अतएव कई स्थानों में वाणी के लिए “वाग्वारेन्द्र वायवः " आदि प्रयोग मिलता है । वायुपुराण 2/44 में वायु को 'शब्दशास्त्रविशारद" कहा गया है । क्वीन्द्राचार्य के सूचीपत्र में "वायु' व्याकरण का उल्लेख है ।
व्याकरणशास्त्र का तृतीय आचार्य बार्हस्पत्य भरद्वाज है । यद्यपि वर्तमान समय में भरद्वाजतंत्र अनुपलब्ध है । तथापि शकतंत्र के पूर्वोक्त प्रमाण से स्पष्ट है कि
भरदाज व्याकरण शास्त्र का प्रवक्ता था ।
. आचार्य भागुरि का उल्लेखा पाणिनीयाष्टक में उपलब्ध नहीं होता तथापि भागुरि-व्याकरण-विष्यक मतप्रदर्शक निम्नश्लोक वैयाकरण-निकाय में अत्यन्त प्रसिद्ध है
वष्टि भागुरिल्लोपमवाप्योरूपसर्गयोः । आप चैव हलन्तानां यथा वाचा निशा दिशा ||
आचार्य भागुरि के पश्चात उल्लिखित प्रसिद्ध आचार्य पौष्करसादि है । तैत्तिरीय और मैत्रायणीय प्रातिमाख्य में पोऽकरता दि के अनेक मत उद्त हैं।
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1. महाभाष्य 8/4/48.