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[कल्याण-कलिका-प्रथमखण्डे __अर्थ-प्रासादगर्भना बे भाग करी द्वार तरफनु गर्भाध छोडी सामेनी भीत तरफना गर्भाधना ५ भाग करवा, भीत तरफथी गणतां गर्भाधरेखानी पासेनो पांचमो भाग गणाशे, आ पांच भागो पैकीना १ लामा यक्षादि, २ जामां सर्व देवीओ ३ जामां जिन सूर्य स्कंद कृष्णनी प्रतिमाओ, ४ था भागे ब्रह्मा अने ५ मा भागमा शिवलिंगनी स्थापना करवी, श्लोकोनो आ सामान्य अर्थ मानीने जीजा भागना मध्यमां जिनप्रतिमा मध्य आवे एवी रीते प्रतिमा बेसाडे छे अने प्रतिमा मध्य पण पलांठीनो नहिं पण मस्तकनी शिरवानो अर्धभाग माने छे एन परिणाम ए आवे छे के पलांठी ४ भागमा पहोंचे छे अने आसन (पवासन) नीचे आखो पांचमो भाग लेवो पडे छे आम आवो अर्थ लगाडतां जिनासन नीचे अर्ध गभारो पहोंची जाय छे.
त्रीजा मध्यना हिमायती महानुभावोने हुं पूछवा इच्छंछु के आम जीजा भागना गर्ने प्रतिमानी शिखानु मध्य राखशो त्यारे सपरिकर. प्रतिमार्नु परिकर शा आधारे शखशो ? त्रीजा भाग सुधी जिनासननो कोण राखतां तो परिकरनी स्थिति पाछली भीतने आधारे रही शके छे पण तमारी कल्पना प्रमाणे तो लगभग गभारानो एक चतुर्थांश पाछल खाली रहे छे | ए बधा भागमां नीमण देइने तेने आधारे परिकर उभुं राखशो ? अने ए केवु सुंदर लागशे ? भाइओ शिल्पशास्त्रनो मर्म समज्या विना ए शास्त्रनी मश्करी न करो, अपराजित पृच्छामां ए वस्तु सारी रीते स्पष्ट करीने समजावी छ जेने समजो अने पकडेल भ्रमणात्मक मार्गथी दूर थाओ, तमारी भ्रमणामां वास्तुसारर्नु भाषान्तर पण होइ शके पण आवां अशुद्धि पूर्ण भाषान्तरो उपरथी कोइ निश्चित धारणा न बांधो! (१४) शिल्पिओए सामान्य-विशेष नियमो समजीने चालवू जोइये
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