Book Title: Jivan ka Utkarsh Author(s): Chitrabhanu Publisher: Parshwanath VidyapithPage 12
________________ X 'जीवन का उत्कर्ष: जैन धर्म की बारह भावनाएँ ग्रंथ में श्री चित्रभानु की ३५ वर्षों की ज्ञान और ध्यान की साधना का निचोड़ है। ये प्रवचन साधकों को ध्यान की साधना के समय दिये गए थे। इनमें सुस्पष्ट, गंभीर एवं प्रेरणात्मक उद्बोधन हैं। प्रत्येक अध्याय एक-एक भावना का वास्तविक चित्र उपस्थित करता है तथा परिवर्तनशील मनुष्य जीवन में जो अपरिवर्तनशील तत्त्व है, उसकी सम्यक् व्याख्या करता है। इन भावनाओं के द्वारा हम जीवन के सत्य का सही बोध प्राप्त करते हैं। इन भावनाओं के द्वारा प्रत्येक धर्म, वर्ग और संस्कृति का मानव 'सभी जीवों के प्रति करुणा' का संदेश ग्रहण करता है। श्री चित्रभानु का जन्म सन् १९२२ में हुआ। सन् १९४२ में आपने श्रमण दीक्षा ग्रहण की तथा सन् १९७० तक श्रमण - जीवन का पालन किया। तदुपरांत धर्म प्रचारक के रूप में पाश्चात्य देशों में जैन सिद्धांतों का विश्वव्यापी प्रचार करने के हेतु आप द्वितीय आध्यात्मिक शिखर परिषद् में भाग लेने जिनेवा पहुँच गए। आपकी प्रेरणा से जैन समाज ने एक नया इतिहास रचा जब २२ मई, २००१ को भगवान् महावीर के २६०० वें जन्म महोत्सव के शुभ अवसर पर अमेरिका के सदन के प्रतिनिधियों (House of Representatives) के समक्ष केपिटोल में श्री चित्रभानु ने जैन धर्म का अहिंसा का संदेश दिया। इस कार्यक्रम में अमेरिका एवं कनाडा के १४० जैन प्रतिनिधि भी दर्शक गेलेरी में उपस्थित थे। श्री चित्रभानु ने सन् १९४२ से अब तक दस हज़ार से अधिक उद्बोधन दिए हैं तथा अहिंसा, करुणा एवं शाकाहार का व्यापक प्रचार-प्रसार किया है। सन् १९६३ में संयुक्त राष्ट्रसंघ में प्रथम बार महावीर जयन्ती मनाई गयी । करुणा अन्तर्राष्ट्रीय संस्था की स्थापना चेन्नई में सन् १९९५ में हुई। इस संस्था का उद्देश्य विद्यालयों के एवं महाविद्यालयों के विद्यार्थियों के हृदय में अहिंसा, करुणा, प्राणिमात्र के प्रति प्रेम, पर्यावरण की रक्षा एवं शाकाहार का प्रचार करना है। यह प्रतिष्ठान प्रत्येक विद्यार्थी के हृदय में प्राणिमात्र के प्रति मित्रता, गुणज्ञों के प्रति प्रमोद, दुखी जीवों के प्रति दया एवं अपने से विपरीत भाव रखने वालों के प्रति तटस्थ भाव रखने का प्रचार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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