________________
स रिजी ने पंचपीरो को साधन किया, वीकनेर पधारे। करमसी' शाह के आग्रह से केरिणी चौमासा करके जेसलमेर पधारे ।
सा० अर्जुनमाल्हू ने प्रवेशोत्सव किया। नदी स्थापन कर: कम सी शाह ने चतुर्थ व्रत अंगीकार किया। जेसलमेर चातुर्मास । कर पाली पधारे । सघपति जूठा कारित चैत्य की प्रतिष्ठा को। नगरशेठ नेता ने गुरु श्री को बदन किया। चातुर्मास पाटण कियो । वहा से अहमदाबादी संघ के प्राग्रह से वहां चातुर्मास । किया । अनेको को पाठक, वाचकपद एवं दीक्षा प्रदान की।
इससे पूर्व अम्बिकादेवी ने प्रत्यक्ष होकर 'आपको भट्टारक' पद पाँचवे वर्ष प्राप्त होगा।' ऐसा भविष्यवाणी की थी वह एवं अन्य पचास बोल फलीभूत हुए । अम्बिका हाजिर रहकर आपको सानिध्य करती थी। जयतिहुअरग के स्मरण से धरणेन्द्र ने 'प्राज से चौथे वर्ष फागुण सुदि ७ को आप भट्टारक पद पाओगे' ऐसा कहा था । श्री जिनसिंहस रिजी के स्वर्गवास की स चना तीन दिन पूर्व आपको ज्ञात हो गई थी । बाल्यावस्था मे भी अपने कथनानुसार गच्छ पहरावणी, १३६००० ग्रंथ भंडार मे रखना, ५०० उपवास करना आदि कार्य सम्पन्न किए।
१- बीकानेर मे आपकी प्रतिष्ठित अनेक मूर्तिया स० १६७५ से १६६६ तक की प्रतिष्ठित की हुई उपलब्ध है, जिनके लेख हमारे 'बीकानेर-जैन लेख संग्रह में प्रकाशित है । बीकानेरके सुप्रसिद्ध आदीश्वरजी के मदिरमें . स०१६८६के चैत्र बदि ४ को आपकी प्रतिष्ठिस जिनसिंहसूरि चरणपादुका भौर जिनचंद्रसूरिजी की मूर्ति है । स. १६८७ ज्येष्ठ सुदि १० की प्रतिष्ठित भरत बाहुबलि प्रतिमा और सं० १६६४ फागुण बदि ७ को प्रतिष्ठित पुरोक स्वामी, एवं सुविषिनाथ की मूर्तिया है । सं०१६६६ की प्रतिष्ठित मरुदेवी मूति आदीश्वरपादुका प्रादि है।
(6)