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पुर के मन्दिर का जीर्णोद्धार कराया और सं० १६७५ माग शीर्ष शुक्ला १२ शुभ मुहूर्त मे सूरिमहाराज से प्रतिष्ठा करवाई। कवि ने थाहरू शाह के धर्म कार्यों का वर्णन इस प्रकार किया है-लौद्रवपुर का जीण प्रासादोद्धार, ग्रामदो में खरतर गच्छीय ज्ञानभंडार कराया, दानशाला खोली, चारो अद्वाहियो में ४४०० जिन प्रतिमाओ की पूजा, सातो मन्दिरो मे ध्वजा चढाई,गीतार्थों के पास सिद्धात श्रवण, त्रिकाल देवप जा आदि धम कार्य करता था। लोद्रवप र प्रतिष्ठा-समय देशान्तरो का संघ बुलाया। तीन रुपये भौर अशरफियो की लाहण की, राउल जी को विप ल द्रव्य भेट किया, जाचको को मनोवांछित दिया, हरराज और मेघराज सहित चिरजीवी रहे । उस समय जीदागाह ने २००) रुपये देकर इन्द्रमाल ग्रहण की। जोवराज भी पुत्र सहित शोभायमान था।
इसके पश्चात् अहमदावाद के सुप्रसिद्ध संघपति रूपजी को चिट्ठी नफरइ (डाकिया) ने लाकर दी। शत्र जय प्रतिष्ठा के लिए सूरिजी को बुलाया था । तव करमसी शाह और माल्हु अरजुन ने उत्साह पक संघ निकाला। गांव गाँव में लाहण करता हुमा सघ श्री जिनराज मूरिजी के साथ शव जय पहुचा। युगादि जिनेश्वर के दर्शन कर संघ ने अपना मनुष्य जन्म सफल किया।
अव कवि रूपजी शाह केविषय में कहता है कि अहमदावाद के खरतर गच्छीय श्रावक सोमजो और शिवा वस्तुपाल तेजपाल की भांति धर्मात्मा हुए, जिन्होने स. १६४४ मे शत्र जय का संघ निकाला । अहमदाबाद में महामहोत्वपर्वक जिनालय की भी प्रतिष्ठा करवाई । खभात, पाटण के संघ को आमंत्रित कर २५६१,२५६८,२५७०,२५७२,में प्रकाशित है । सं०१६८२ और १६६३ में भी थाहरूशाह ने गणघर पादुका व मूर्तियो की प्रतिष्ठा, जिनराजसूरि जी से करवाई थी । इनके स्थापित ज्ञानभंडार जेसलमेर मे है।
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