________________
रचना को "जिरणदत्त पुराण' के नाम से सम्बोधित किया है। रल्ह कवि के पश्चात् भी १५ वीं शताब्दी में दो विद्वानों ने जिनदत्त के जीवन पर अलग अलग कृतियां लिखी। इनमें प्रथम महापडित रइधु हैं जो अपनश के भारी विद्वान थे सधा उस भाषा में रचना करना गौरव समझते थे । इसी शताब्दी में गुणसमुद्र सूरि ने संरकृत गद्य में संयत् १४५४ में जिनदत्त कथा लिखी। इसके पश्चात् २० वीं शताब्दी में पन्नालाल चौधरी ने जिनदत्त चरित्र बनिका ‘एवं बख्तावर सिंह ने जिनदत्त चरित भाषा (छन्द बद्ध) निखा । इस प्रकार भटि जिनदत्त की कथा प्रायः प्रत्येक युग में लोकप्रिय रही है और जन विद्वान उसके जीवन पर एक न एक रचना लिखते आ रहे हैं । रल्ड काय द्वारा रचित 'जिरणदत्त चरित' पूर्वापर सभय के अनुमार पतुर्थ रचना है, इस दृष्टि से भी रचना का महत्व है । रलह की रचना के अनुसार जिनदत्त की जीवन-कथा निम्न प्रकार है :----
कथा सार
(५६ ने ६५) जिनदत्त वसंतपुर के सेठ जीव देव का इकलौता पुत्र था। उसकी माता का नाम जीवंजमा था। उस समय वसंतपुर पर चन्द्रशेखर नाम का राजा राज्य करता था । जीवदेव नगर सेठ था और उसकी संपत्ति का कोई पार नहीं था । जिनदत्त को खूब लाड प्यार से पाला गया था । १५ वर्ष की अवस्था में उसे पढ़ने के लिये उपाध्याय के पास भेजा गया । वहां उसने लक्षण नथ, छन्द शास्त्र, तक शास्त्र, श्याकरण, रामायण एवं महापुगरण पद्धे । इसके पश्चात् उसे अन्य कलायें सिम्ललाई गई।
(६६ से ७६) युवा होने पर जब उसने विवाह करने की कोई इच्छा प्रकट नहीं की तो सेठ को बहुत चिन्ता हुई । मेठ ने नगर के जुबारियों एपं लंपटों को बुलाया और जिनदत्रा को मार्ग पर लाने का उपाय करने के लिये कहा । अब जिनदत्त जुआरियों को संगनि में रहने लगा और नगरवधुनों के पास जाने लगा लेकिन फिर भी उसका मन उनकी ओर नहीं झुका ।