Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 21
________________ ANSAR शासन की आधारशिला : संकल्प। बिलकुल ही मिट गए हो; जहां कुछ भी नहीं बचा; जहां परम क्योंकि मजा ही इसमें था कि जो मेरे पास हो, मेरे पड़ोसियों के शून्य अवतरित होता है। . पास न हो। आशीर्वाद तो मिल गया। आशीर्वाद में कोई कमी न अब हम सूत्रों को लें: थी। देवता ने कहा, जो तू चाहेगा उसी क्षण पूरा होगा। इसमें महावीर ने कहा है, 'जो तुम अपने लिए चाहते हो वही दूसरों | कुछ रुकावट न थी। लेकिन मन सुखी न हुआ, प्रसन्न न हुआ, के लिए भी चाहो। और जो तुम अपने लिए नहीं चाहते, वह फूल खिले नहीं। बड़ा उदास हो गया। बड़े उदास मन से देखा दूसरों के लिए भी मत चाहो। यही जिन शासन है। तीर्थंकर का कि देखें, वरदान काम भी करता है या नहीं। यह कोई वरदान यही उपदेश है। हुआ! यह तो खाली, चली हुई कारतूस जैसा वरदान हुआ। समझें। साधारणतः तम जो अपने लिए चाहते हो, वह तम इसमें कुछ रस ही न रहा। दूसरों के लिए नहीं चाहते; क्योंकि फिर तो अपने लिए चाहने का फिर भी उसने कहा, देखें शायद...। कहा कि एक महल बन कोई अर्थ ही न रहा। तुम एक महल बनाना चाहते हो अपने जाए। एक महल बन गया। लेकिन जब बाहर आकर देखा तो लिए, तो बहुत गहरे में तुम पाओगे कि तुम चाहते हो कि दूसरा बड़ा मुश्किल में पड़ गया : दो-दो महल बन गए थे पड़ोसियों कोई ऐसा महल न बना ले, अन्यथा मजा ही गया। अगर सभी के। छाती पीट ली। यह कोई वरदान हुआ! यह तो अभिशाप के पास महल हों तो तुम्हारे पास महल होने का अर्थ ही क्या हो गया। इससे तो पहली ही भले थे। अपनी ही मेहनत से कर रहा! तुम एक सुंदर स्त्री चाहते हो कि सुंदर पुरुष चाहते हो, तो लेते। लेकिन उसने रास्ते खोज लिये। आदमी की हिंसा बड़ी तुम भीतर यह भी चाहते हो कि ऐसी सुंदर स्त्री किसी और को न | गहन है! उसने कहा, 'ठीक है! देवता धोखा दे गये, हम.भी | मिल जाए, अन्यथा कांटा चुभेगा। तुम ऐसी सुंदर स्त्री चाहते हो रास्ता खोज लेंगे!' मिला होगा वकीलों से, सलाह ली होगी। जो बस तुम्हारी हो, और वैसी सुंदर स्त्री किसी के पास न हो। किसी वकील ने सुझा दिया कि इसमें कुछ घबड़ाने की बात नहीं सुंदर स्त्री में भी तुम अपने अहंकार को ही भरना चाहते हो। है। जहां-जहां कानून हैं वहां-वहां निकलने का उपाय है। तू अपने महल में भी अहंकार को भरना चाहते हो। ऐसा कर, तू जाकर मांग कि मेरे घर के सामने दो कुएं खुद जाएं। तुम जो अपने लिए चाहते हो, वह तुम दूसरे के लिए कभी नहीं | उसने कहा, 'इससे क्या होगा?' उसने कहा, 'तू पहले चाहते। उससे विपरीत तुम दूसरे के लिए चाहते हो-अपने कोशिश तो कर।' दो कुएं उसके घर के सामने खुद गए, लिए सुख, दूसरे के लिए दुख। लाख तुम कुछ और कहो, लाख पड़ोसियों के सामने चार-चार कुएं खुद गए। वकील ने कहा, तुम ऊपर से कहो कि नहीं, ऐसा नहीं है, हम सब के लिए सुख | 'अब तू प्रार्थना कर कि मेरी एक आंख फूट जाए।' तब समझा चाहते हैं लेकिन जरा गौर से खोजना! सब के लिए सुख तो वह राज। उसने कहा, अरे! मुझे खयाल में ही न आया। एक तुम तभी चाह सकते हो जब तुमने जीवन से अपनी जड़ें तोड़नी आंख फोड़ने का वरदान मांग लिया, पड़ोसियों की दोनों आंखें शुरू कर दी, उसके पहले नहीं। क्योंकि जीवन प्रतिस्पर्धा है, फूट गईं। अब अंधे पड़ोसी और चार-चार कुएं घर के समाने; प्रतियोगिता है, महत्वाकांक्षा है, पागलपन है, छीन-झपट है, | जो हुआ, वह हम समझ सकते हैं। गलाघोंट संघर्ष है। लेकिन सुख हमारा दूसरे के दुख में है। और जीवन हमारा बड़ी पुरानी कहानी है कि एक आदमी ने बड़ी प्रार्थना-पूजा की दूसरे की मौत में है। और हमारी सारी प्रसन्नता किसी की उदासी और किसी देवता को प्रसन्न कर लिया। वर्षों की साधना के बाद पर खड़ी है। हमारा सारा धन दूसरे की निर्धनता में है। लाख तुम देवता बोला और देवता ने कहा, 'क्या चाहते हो?' उसने दूसरे के दुख में सहानुभूति प्रगट करो, जब भी दूसरा दुखी होता कहा, 'जो भी मैं मांगू वह मुझे मिल जाए।' देवता ने कहा, है, कहीं गहरे में तुम सुखी होते हो। और तुम्हारी सहानुभूति में 'निश्चित मिलेगा। लेकिन एक शर्त है : तुमसे दुगुना तुम्हारे भी तुम्हारे सुख की भनक होती है। पड़ोसियों को भी मिल जाएगा।' बस सब पूजा-प्रार्थना व्यर्थ हो तुमने कभी पकड़ा अपने को सहानुभूति प्रगट करते हुए? गई। वह आदमी उदास हो गया। यह भी क्या आशीर्वाद हआ! | किसी का दिवाला निकल गया, तुम सहानुभूति प्रकट करने जाते Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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