Book Title: Jina Sutra Part 1
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 20
________________ 10 जिन सूत्र भाग: 1 है, उनके लिए महावीर का मार्ग है । कहानी सुंदर है, अर्थपूर्ण है । इतना कहती है कहानी कि 'ब्राह्मण के घर कभी कोई योद्धा पैदा हुआ ? योद्धा पैदा होने के लिए रोएं रोएं में, खून-खून में, हड्डी-मांस-मज्जा में युद्ध का स्वर चाहिए। दूसरी मजे की बात है कि चौबीस ही जैनों के तीर्थंकर क्षत्रिय घर में पैदा हुए और चौबीस ही तीर्थंकर अहिंसक हो गए, उन्होंने हिंसा छोड़ दी । तलवार लेकर भी क्या लड़ना ! वह कमजोर के लड़ने का ढंग है; कमजोरी को तलवार से पूरा कर लेता है। इसलिए आदमी जितना कमजोर होता गया है, उतने ही उसके शस्त्र मजबूत होते चले गए हैं। अब आज तो लड़ने के लिए कमजोर और ताकत का कोई सवाल ही नहीं है; एटमबम गिराना हो, बच्चा भी गिरा दे सकता है। एक बटन दबा देगा हवाई जहाज में से, एटमबम गिर जाएंगे। जिस आदमी ने एटम गिराया हिरोशिमा, नागासाकी पर, वह कोई बलशाली आदमी थोड़े ही था; साधारण आदमी! और एक लाख आदमी क्षण में मार डाले! यह कमजोर की बात हो गई। महावीर कहते हैं, जो जितना ही योद्धा होता जाएगा उतने ही शस्त्र छोड़ देगा; उसका खुद होना ही पर्याप्त है। फिर वह मारेगा भी नहीं, क्योंकि मारने की भाषा भी कमजोर की भाषा है। तुम दूसरे को मिटाना चाहते हो, क्योंकि तुम दूसरे से डरते हो - कहीं उसे जीवित छोड़ दिया, हानि न करे; कहीं तुम्हें न मार डाले! तुम उसी को मारते हो जिससे तुम्हें डर है कि कहीं तुम्हारी मौत न आ जाए। महावीर ने कहा, वह भी कमजोर की भाषा है, हम किसी को मारेंगे नहीं। अगर कोई मारने भी आएगा तो हम मरने को राजी रहेंगे, भागेंगे नहीं, लड़ेंगे भी नहीं । साधारणतः दो उपाय हैं जब भी तुम पर कोई हमला करे तो या तो भागो या जूझो - दोनों ही कमजोर के हैं। जो बहुत कमजोर है, वह भाग जाता है; जो उतना कमजोर नहीं है, वह लड़ता है। लेकिन हैं दोनों ही कमजोर । महावीर कहते हैं, जो सच में कमजोरी के पार हो गया, अभय गया, वह न तो भागता है न लड़ता है। वह कहता है, 'खड़े हैं! हम यहीं खड़े हैं। तुम्हें मारना 'मार डालो।' वह मर जाता है, लेकिन उसके हृदय में हिंसा का भाव नहीं उठता। वह मर जाता है, लेकिन उसके हृदय में प्रतिहिंसा नहीं उठती। यहां एक बात और समझ लें, क्योंकि फिर सूत्रों को समझना Jain Education International आसान होता जाएगा। जब परमात्मा ने सोचा कि अकेला हूं, थक गया हूं, बहुत जाऊं, तो जीवन पैदा हुआ। निश्चित ही महावीर मृत्यु का करेंगे। उलटे लौटना है। तो जिस तरह परमात्मा ने जीवन के धागे फैलाए थे, उसी तरह उनको मृत्यु के धागे फैलाने हैं, या जीवन के धागे काटने हैं। वृक्ष खड़ा है, तो वासना की जड़ें फैलती हैं पृथ्वी में, तो ही खड़ा है। रस लेता है, आकाश में फैलाता है शाखाओं को, सूरज की किरणें पीता है। वृक्ष को मरना हो, वृक्ष को सिकुड़ना हो, बीज में डूबना हो, वापिस लौटना हो, तो फिर जड़ों को खींच लेगा, फिर शाखाओं को झुका लेगा, क्योंकि फिर सूर्य की ऊर्जा की कोई जरूरत न रही। फिर पृथ्वी के रस की कोई जरूरत न रही। महावीर के सारे सूत्र एक गहन अर्थ में आत्मघात के सूत्र हैं इसलिए तुम चकित होओगे कि महावीर अकेले जाग्रत पुरुष हैं जिन्होंने अपने संन्यासी को आत्मघात की भी आज्ञा दी है। दुनिया में किसी ने नहीं दी। आत्मघात की भी आज्ञा ! दुनिया का कोई कानून और दुनिया का कोई शास्त्र स्वीकार नहीं करता कि आदमी को हक है कि वह मरना चाहे तो मर जाए; महावीर स्वीकार करते हैं— करना ही पड़ेगा। यह तर्कयुक्त है, क्योंकि वे सिकुड़ने की तरफ जा रहे हैं, लौट रहे हैं वापिस, तो जीवन के सब तरफ से संबंध तोड़ देने हैं। अगर कोई यह भी चाहे कि मुझे पूरे संबंध अभी छोड़ देने हैं, तो कौन दूसरा उसे रोकने का हकदार है ! महावीर ने आखिरी स्वतंत्रता आदमी को दी है कि वह आत्मघात करना चाहे तो भी निर्णायक स्वयं । अगर वह मरना चाहे तो भी हक है उसका ! मृत्यु मनुष्य का जन्म सिद्ध अधिकार है। लेकिन ये सब बातें संगत हैं उनके साथ। और उनके सारे सूत्र, कैसे जीवन से हमारे संबंध छिन्न-भिन्न हो जाएं, कैसे यह फैलाव बंद हो जाए, कैसे हम वापिस घर की तरफ लौट पड़ें, इसके ही सूत्र हैं। यह सारा शास्त्र मृत्यु का शास्त्र है । तबीबों से मैं क्या पूछू इलाजे-दर्दे-दिल । मरज जब जिंदगी खुद हो तो फिर उसकी दवा क्या है ! महावीर के लिए जीवन ही रोग है। और रोग तो गौण हैं। और रोग तो मूल रोग की छायाएं हैं। जीवन ही रोग है। जीवन ही बंधन है। उसी से मुक्त हो जाना है। तो महावीर का जो मोक्ष है, वह महामृत्यु है – जहां तुम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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