Book Title: Jaini Saptpadarthi
Author(s): Himanshuvijay
Publisher: Dipchand Bandiya
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श्रीयशस्वत्सागरविनिर्मिताजैनी सप्तपदार्थी। hia-bast
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नमो गुरवे । स्वस्ति स्याद्वादवादाय समरूपप्ररूपिणे । अनेकान्तस्वरूपाय तस्मै नित्यं नमोनमः ॥१॥ अपारसंसारसमुद्रसेतुं विज्ञानसारस्वविधानहेतुम् । सत्तय॑तर्काम्बुधिपारमेतुं स्तुवे जिनेन्द्रं वृषभैककेतुम् ॥२॥ अज्ञानतिमिरोद्भेद-भास्वद्भास्करसन्निभाम् । भाग्यसम्भारलभ्यार्थी जैनी वाचमुपास्महे ॥३॥
आदिवाक्यम् । प्रमाणनयप्रतीतार्थपदार्थसार्थप्ररूपणार्थमिदमुपक्रमः[१] । जीवाऽजीवाऽऽश्रव-बन्ध-संवर-निर्जरामोक्षास्तत्त्वानि सप्तैव पदार्थाः। पुण्यपापद्वयमाश्रवाऽ, 1 " श्रीगुरुभ्यो नमः ” इति क-पाठः ।
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