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( १९) व्रत, नियम और इद्रियसंयमका पालन करता हुआ जगत् के सम्मुख आत्मसंयमका एक बडाही उत्तम आदर्श प्रस्तुत करताहै। प्राकृत भाषा अपने संपूर्ण मधुमय सौन्दर्यको लिए हुए जैनियोंकी रचनामेंही प्रगट की गई है ” इत्यादि.
१४ मि. आवे जे. ए. डवाई Discription of the character Manners and Customs of the people of India and of their institution and ciril (Recalcara
ऑफ धी केरेक्टर मेनर्स एन्ड कस्टम्स ऑफ धी पीपल ऑफ इन्डिया एन्ड ऑफ धेर इन्स्टीट्युशन-एन्ड सीरील ) आ नामना पुस्तकमां जे सन् १८१७ मां लंडनमा छपाएल छे, तेमां ऐमणे जैनधर्मने घणोज प्राचीन जणावेल छे, अने जैनोना चार वेद १ प्रथमानुयोग, चरणानुयोग, करणानुयोग अने द्रव्यानुयोग ने आदीश्वर भगवाने रच्या एम कां छे अने आदीश्वरने जनीओमां घणा प्राचीन भने प्रसिद्ध पुरुष जैनिओना २४ तीर्थकरोमां सहुथी पहेलां थयेला जणान्या छे.
१५ वळी रा. रा. वासुदेव गोविन्द आपटे बी. ए. इन्दोर निवासी एक वखतना व्याख्यानमा लखे छे के
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