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-रूप को ही बदलने की चेष्टा की है महावीर काल से अब तक ढाई हजार वर्ष के समय में यह एक सर्वप्रथम वर्ग है जिसने महावीर के शासन को पलटने की चेष्टा की है। दिगम्बर जैन सकृति सेवक समाज का उदय और
उसका कार्यक्रम क्रान्तियाँ दो प्रकार की होती है, एक बाहरी तथा दूसरी भीतरी । वाहिरी क्रान्ति का रूप उसके खडन का होता है इससे जनता अपनी परम्पराकी रक्षामे सचेत हो जाती है और इसके लिए वह उससे अपनी परम्परा की रक्षा के लिए हर सभव प्रयत्न करतो है, भीतरी क्रान्ति का रग और रूप, बाहर से परम्परा के रूप का हो प्रतीत होता है किन्तु वास्तव में वह परम्परा के रूपका न होकर उसकी आत्मा को कुचलने की चेष्टा ही होती है । यह चेष्टा जनता की निगाह मे बहुत देर से आती है। पहिले तो जनता भीतरो क्रान्ति को क्रान्ति न मानेकर परम्परा की मान्यताओ की व्याख्या मात्र मानती है और विचारशील व्यक्ति भी मानते हैं कि ऐसा करने का प्रत्येक विचारक को अधिकार है।
हमारे सामने भो यह प्रश्न आया है तथा हमारे महामन्त्रीजी ने इसका निम्न प्रकारसे स्पष्टीकरण किया है
हमारे मन्तव्य एव कार्यक्रम के सम्बन्ध मे हमारे एक माननीय एव विचारक सहयोगी ने हमको लिखा है कि सोनगढ का कार्यक्रम आर्य-समाज के कार्यक्रम से भिन्न है सोनगढ के विद्वान विचारको ने तो पूर्वाचार्यों की मात्र व्याख्या ही की