________________
श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
के कारण दूसरे मिथ्यात्व वगैरह स्थानों में चला गया है उसका मुड़कर फिर अपने स्थान में आना प्रतिक्रमण कहलाता है । अथवा जो आत्मा तायोपशमिक भाव से औदयिक भाव में आगया है उसका फिर बायोपशमिक भाव में लौट आना प्रतिक्रमण है। अथवा
प्रति प्रति वर्तन वा शुभेषु योगेषु मोक्षफलदेषु । निःशल्यस्य यतेर्यत्तद्वा ज्ञेयं प्रतिक्रमणम् ॥
अर्थात्- शल्य रहित संयमी का मोक्षफल देने वाले शुम योगों में प्रवृत्ति करना प्रतिक्रमण है। प्रतिक्रमण के आठ भेद हैं
(१)प्रतिक्रमण (२) प्रतिचरणा (३) परिहरणा (४) वारणा (५) निवृत्ति (६) निन्दा (७) गर्दा और (८) शुद्धि । (१)प्रतिक्रमण-इसका अर्थ होता है उन्हीं पैरों वापिस मुड़ना। इसके दो भेद हैं- प्रशस्त और अप्रशस्त । मिथ्यात्व आदि का प्रतिक्रमण प्रशस्त है। सम्यक्त्व आदि का प्रतिक्रमण अप्रशस्त है। इसका अर्थ समझने के लिए दृष्टान्त दिया जाता है____एक राजा ने शहर से बाहर महल बनवाना शुरू किया। शुभ मुहूर्त में उसकी नींव डालकर पहरेदार बैठा दिये। उन्हें कह दिया गया, जो इस हद्द में घुसे उसे मार डालना किन्तु यदि वह जिस जगह पैर रख कर अन्दर गया था उसी जगह पैर रखते हुए वापिस लौट आए तो छोड़ देना । कुछ देर बाद जब पहरेदार असावधान हो गए तो दो अभागे ग्रामीण पुरुष उसमें घुस गए । वे थोड़ी ही दूर गए थे कि पहरेदारों ने देख लिया । सिपाहियों ने तलवार खींच कर कहा- मूर्यो ! तुम यहाँ क्यों घुस गए ? ग्रामीण व्यक्तियों में एक कुछ ढीठ था, वह बोला- इस में क्या हरज है ? यह कह कर अपने को बचाने के लिए इधर उधर दौड़ने लगा। राजपुरुषों ने पकड़ उसी