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. श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
घी वगैरह सब भक्ष्य पदार्थों में तथा जिन वृक्षों के फल मीठे थे उन पर भी विष का प्रयोग कर दिया। दूसरे राजा ने आकर वहाँ विष का असर देखा तोसारीसेनाको सूचित कर दिया कि कोई भी साफ पानी न पीवे । साथ ही मीठे फल आदि न खावे । जो इस तरह के पानी या फल वगैरह काम में लाएगा वह तुरन्त मर जायगा । दुर्गन्धि वाला पानी तथा खारे और कड़वे फल ही काम में लाने चाहिएँ । इस घोषणा को सुन कर जो मान गए वे जीवित रहे, बाकी मर गए। . इसी तरह तीर्थङ्कर रूपी राजा विषयभोगों को विषमिश्रित पानी और अन्न के समान बताकर लोगों को उनसे दूर रहने की शिक्षा देते हैं । जो उनकी शिक्षा नहीं मानते वे अनन्त काल तक जन्म मरण के चक्कर में पड़े रहते हैं। उनकी शिक्षा मान कर भव्य प्राणी संसार चक्र से छूट जाते हैं। (५) निवृत्ति- अर्थात् किसी काम से हटना। __ दृष्टान्त- किसी शहर में एक जुलाहा रहता था। उसके कारखाने में कई धूर्त पुरुष बुनाई का काम करते थे। उन में एक धृते मीठे स्वर से गाया करता था। जुलाहे की लड़की उससे प्रेम करने लगी। उस धूर्त ने कहा- चलो हम कहीं भाग चलें, जब तक किसी को मालूम न पड़े। लड़की ने जवाब दियाराजा की लड़की मेरी सखी है । हम दोनों ने एक ही व्यक्ति की पत्नी बनने का निश्चय किया है । इसलिए मैं उसके बिना न जाऊँगी। धृतं ने कहा- उसे भी ले चलो। दोनों ने आपस में भागने का निश्चय कर लिया। दूसरे दिन सुबह ही वे भाग निकले । उसी समय किसी ने गीत गायाजइ फुल्ला कणियारया चूयय ! अहिमासमयंमि घुटुंमि । तुह न खमं फुल्लेउ जइ पञ्चता करिति डमराई॥