Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 438
________________ -- - - - - श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला संख्या से गुणा करके दो से भाग दे दे, योगफल निकल आएगा। जैसे- 10 तक का योगफल निकालने के लिए दस संख्या को एक अधिक अर्थात् 11 से गुणा कर दे। गुणनफल 110 हुआ। उसको दो से भाग देने पर '55' निकल आए। (7) वर्ग- किसी संख्या को उसी से गुणा करना वर्गसंख्यान है -जैसे दो को दो से गुणा करने पर चार हुए। (8) घन-एक सरीखी तीन संख्याएं रखकर उन्हें उत्तरोत्तर . गुणा करना धनसंख्यान है। जैसे- 2, 2,2 / यहाँ 2 को 2 से . गुणा करने पर 4 हुआ। 4 को 2 से गुणा करने पर 8 हुआ। (8) वर्गवर्ग- वर्ग अर्थात् प्रथम संख्या के गुणनफल को उसी वर्ग से गुणा करना वर्गवर्गसंख्यान है। जैसे 2 का वर्ग हुश्रा : 4 / 4 का वर्ग 16 / 16 संख्या 2 का वर्गवर्ग है। (10) कल्प- आरी से लकड़ी को काट कर उसका परिमाण जानना कल्पसंख्यान है। (ठाणांग, सूत्र 747) 722- वाद के दस दोष गुरु शिष्य या वादी प्रतिवादी के आपस में शास्त्रार्थ करने को वाद कहते हैं / इसके नीचे लिखे दस दोष हैं(१) तजातदोष- गुरु या प्रतिवादी के जन्म, कुल, जाति या पेशे आदि किसी निजी बात में दोष निकालना अर्थात् व्यक्तिगत आक्षेप करना / अथवा प्रतिवादी के द्वारा क्रोध में आकर किया गया मुखस्तम्भन आदि दोप, जिससे बोलते बोलते दूसरे की जवान बन्द हो जाय / (2) मतिभंग दोष- अपनी ही मति अर्थात् बुद्धि का भंग हो जाना / जानी हुई बात को भूल जाना या उसका समय पर न सूझना मतिभंग दोष है।

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