Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 476
________________ 444 सेठिया जैन मन्यमाला (6) शोक न उपजाने से। (7) खेद नहीं कराने से (नहीं झुराने-रुलाने से)। (8) उपरोक्त प्राणियों को वेदना न देने से या उन्हें लाकर टप टप आँसू न गिरवाने से। (8) प्राणियों को न पीटने (मारने) से। (10) प्राणियों को किसी प्रकार का परिताप उत्पन्न न कराने * से जीव सातावेदनीय कर्म का बन्ध करता है | (भगवती शतक 7 उद्देशा 6 ) ७६२-ज्ञान वृद्धि करने वाले नक्षत्र दस नीचे लिखे दस नक्षत्रों के उदय होने पर विद्यारम्भ या अध्ययन सम्बन्धी कोई काम शुरू करने से ज्ञान की वृद्धि होती है। मिगसिर अहा पुस्लो तिषिण अ घुवा य मूलमस्सेसा। हस्थो चित्तो य तहा दस वुद्धिकराई नाणस्स // (1) मृगशीर्ष (2) आदर्दा (3) पुष्य (4) पूर्वफान्गुनी (5) पूर्वभाद्रपदा (6) पूर्वाषाढा (7) मूला (8) अश्लेषा (6) हस्त (10) चित्रा। (समवायांग 10 ) ( ठाणांग, सूत्र 781) ७६३-भद्र कर्म बांधने के दस स्थान आगामी काल में सुख देने वाले कर्म दस कारणों से बाँधे जाते हैं। यहाँ शुभ कर्म करने से श्रेष्ठ देवमति प्राप्त होती है। वहाँ से चवने के बाद मनुष्य भव में उत्तम कुल की प्राप्ति होती है और फिर मोच मुख की प्राप्ति हो जाती है। वे दस कारण ये हैं(१) अनिदानता- मनुष्य भव में संयम तप आदि क्रियाओं के फलखरूप देवेन्द्रादि की ऋद्धिकी इच्छा करना निदान (नियाणा) है। निदान करने से मोचफल दायक ज्ञान, दर्शन और चारित्र रूप रत्नत्रय की आराधना रूपी लता (बेल) का विनाश हो जाता हैं। तपस्या आदि करके इस प्रकार का निदान न करने से

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