Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 481
________________ मी जैम सिद्धान्त बोल संग्रह जिससे दूसरे की हानि हो और सत्य भङ्ग हो तथा व्यवहार में अप्रतीति हो यह सहसाकार नाम का दोष है। (3) सच्छन्द--सामायिक में स्वच्छन्द अर्थात् धर्म विरुद्ध सम्म द्वेष की वृद्धि करने वाले गीत आदि गाना सच्छन्द दोष है। (4) संक्षेप- सामायिक के पाठ या वाक्य को थोड़ा करके बोलना संक्षेप दोष है। (5) कलह-सामायिक में कलह उत्पन्न करने वाले वचन बोलना कलह दोष है। (6) विकथा-धर्म विरुद्ध स्त्री कथा आदि चार विकथा करना विकथा दोष है। (7) हास्य-सामायिक में हँसना, कौतूहल करना अथवा व्यङ्ग पूर्ण (मजाक या आक्षेप वाले) शब्द बोलना हास्य दोष है। (8) अशुद्ध- सामायिक का पाठ जल्दी जल्दो शुद्धि का ध्यान रखे बिना बोलना या अशुद्ध बोलना अशुद्ध दोष है। (6) निरपेक्ष-सामायिक में बिना सावधानी रखे अर्थात् विना . उपयोग बोलना निरपेक्ष दोष है। (10) मुणमुण-सामायिक के पाठ आदि का स्पष्ट उचारण म करना किन्तु गुन गुन बोलना मुणमुण दोष है। ____ ये दस दोष वचन सम्बन्धी हैं इन से बचना वचन शुद्धि है। (श्रावक के चार शिक्षाव्रत, सामायिक के 32 दोषों में से) ७६६-कुलकर दस गत उत्सर्पिणी काल के - जम्बूद्वीप के भरत क्षेत्र में गत उत्सर्पिणी काल में दस कुलकर' हुए हैं। विशिष्ट बुद्धि वाले और लोक की व्यवस्था करने वाले पुरुष विशेष कुलकर कहलाते हैं। लोक व्यवस्था करने में ये हकार मकार और विकार भादि दण्डनीति का प्रयोग करते हैं / इसका विशेष विस्तार सातवें वोल में दिया गया है। अतीत उत्सर्पिणी

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