Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 484
________________ श्री खेठिया जैव प्रापमाना ६)गौरव दान- यश कीर्ति या प्रशंसा प्राप्त करने के लिए गर्व पूर्वक दान देना गौरवदान है। . नटनर्समुष्टिकेभ्यो दानं सम्बन्धिबन्धुमित्रेभ्यः। यहीयते यशोऽथ गर्वेण तु तद्भवेहानम् // ... भावार्थ- नट,नाचने वाले,पहलवान्, सगे सम्बन्धी या मित्रों को यश प्राप्ति के लिए गर्वपूर्वक जो दान दिया जाता है उसे नौरव दान कहते हैं। (7) अधर्मदान-अधर्म की पुष्टि करने वाला अथवा जो दान अधर्म का कारण है वह अधर्मदान हैहिंसानृतचौर्योद्यतपरदारपरिग्रहप्रसक्तभ्यः। यहीयते हि तेषां तजानीयादधर्माय / / हिंसा, झूठ, चोरी, परदारगमन और प्रारम्भ समारम्भ रूप परिग्रह में आसक्त लोगों को जो कुछ दिया जाता है वह अधर्मदान है। (8) धर्मदान-धर्मकार्यों में दिया गया अथवा धर्मका कारणभूत दान धर्मदान कहलाता है। समतृणमणिमुक्तंभ्यो यदानं दीयते सुपात्रेभ्यः। मक्षयमतुलमनन्तं तदानं भवति धर्माय // जिन के लिए तृण, मणि और मोती एक समान हैं ऐसे मुपात्रों को जो दान दिया जाता है वह दान धर्मदान होता है। ऐसा दान कभी व्यर्थ नहीं होता। उसके बराबर कोई दूसरा दान नहीं है / वह दान अनन्त सुख का कारण होता है। . (8) करिष्यतिदान- भविष्य में प्रत्युपकार की आशा से जो कुछ दिया जाता है वह करिष्यतिदान है / प्राकृत में इसका नाम 'काही दान है। (10) कृतदान-पहले किए हुए उपकार के बदले में जो कुछ किया जाता है उसे कृतदान कहते हैं।

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