Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 443
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह यहाँ उन्हीं के विशेष दोष बताए जाते हैं। वे दस हैं(१) वत्थु-पक्ष के दोष को वस्तु दोष कहते हैं। दोष सामान्य की अपेक्षा वस्तु दोष विशेष है। वस्तुदोष में भी प्रत्यक्षनिराकृत आदि कई विशेष हैं। उनके उदाहरण नीचे लिखे अनुसार हैं (क) प्रत्यक्षनिराकृत- जो पक्ष प्रत्यक्ष से बाधित हो / जैसेशब्द कान का विषय नहीं है। ' (ख)अनुमाननिराकृत-जो पक्ष अनुमान से बाधित हो। जैसेशब्द नित्य है / यह बात शब्द को अनित्य सिद्ध करने वाले अनुमान से बाधित हो जाती है। (ग) प्रतीतिनिराकृत-जो लोक में प्रसिद्ध ज्ञान से बाधित हो। जैसे- शशि चन्द्र नहीं है। यह बात सर्वसाधारण में प्रसिद्ध शशि और चन्द्र के ऐक्यज्ञान से बाधित है। (घ) स्ववचननिराकृत-- जो अपने ही वचनों से बाधित हो। जैसे-- मैं जो कुछ कहता हूँ झूठ कहता हूँ। यहाँ कहने वाले का उक्त वाक्य भी उसी के कथनानुसार मिथ्या है। . ___ (ङ) लोकरूढिनिराकृत- जो लोकरूढि के अनुसार ठीक न हो / जैसे- मनुष्य की खोपड़ी पवित्र है। (2) तज्जातदोष-प्रतिवादी की जाति या कुल आदि को लेकर दोष देना तज्जातदोष है। यह भी सामान्य दोष की अपेक्षा विशेष है। जन्म, कर्म, मर्म आदि से इसके अनेक भेद हैं। (3) दोष-पहले कहे हुए मतिभंग आदि बाकी बचे आउदोषों को सामान्य रूप से न लेकर आठ भेद लेने से यह भी विशेष है अथवादोषों के अनेक प्रकार यहाँदोष रूप विशेष में लिए गए हैं। (4) एकार्थिक-एक अर्थ वाला शब्द एकार्थिक विशेष है। जैसे- घट शब्द एकार्थिक है और गो शब्द अनेकार्थिक है। गोशब्द के दिशा,दृष्टि,वाणी, जल, पृथ्वी, आकाश, वज्र, किरण

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