Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 460
________________ 428 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाना . . . णाम का कथन किया जाता है(8) चारित्र परिणाम- चारित्र के पाँच भेद हैं। सामायिक चारित्र, छेदोपस्थापनीय चारित्र, परिहारविशुद्धि चारित्र सूक्ष्मसंपराय चारित्र, यथाख्यात चारित्र / इन पाँचों चारित्रों में से जीव की किसी भी चारित्र में परिणति होना चारित्र परिणाम कहलाता है। (10) वेद परिणाम- स्त्रीवेद, पुरुषवेद और नपुंसकवेद में से , जीव को किसी एक वेद की प्राप्ति होना वेद परिणाम कहलाता है। किन किन जीवों में कितने और कौन कौन से परिणाम पाये जाते हैं ? अब यह बतलाया जाता है। नारकी जीव-नरक गति वाला, पंचेन्द्रिय, चतुःकषायी (क्रोध मान माया लोभ चारों कषायों वाला) तीन लेश्या (कृष्ण नील कापोत)वाला, तीनों योगों वाला, दो उपयोग (साकार और निराकार) वाला, तीन ज्ञान (मति श्रुति अवधि) तथा तीन अज्ञान वाला।तीनों दर्शन (सम्यग्दर्शन मिथ्यादर्शन मिश्रदर्शन)वाला, अविरति और नपुंसक होता है। भवनपति-असुरकुमार से लेकर स्तनितकुमार तक सब बोल नारकी जीवों की तरह जानने चाहिएं सिर्फ इतनी विशेषता है- गति की अपेक्षा देवगति वाले,लेश्या की अपेक्षा चार लेश्या (कृष्ण नील कापोत तेजो लेश्या)वाले होते हैं। वेद की अपेक्षा स्त्रीवेद और पुरुषवेद वाले होते हैं, नपुंसक वेद वाले नहीं। पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, वनस्पतिकायिक जीव- गति की अपेक्षा तिर्यश्च गति वाले, इन्द्रिय की अपेक्षा एकेन्द्रिय, लेश्या की अपेक्षा प्रथम चार लेश्या वाले,योग को अपेक्षा केवल काय योग वाले, ज्ञान परिणाम की अपेक्षा मति अज्ञानी और श्रुत अज्ञानी, दर्शन को अपेक्षा मिथ्यादृष्टि / शेष बोल नारकी जीवों को तरह

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