Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 466
________________ श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला . (7) रस परिणाम- रस के रूप में पुद्गलों का परिणत होना। रस पाँच हैं- तिक्त, कटु (कडुवा), कषायला, खट्टा, मीठा। (8) स्पर्श परिणाम- यह आठ प्रकार का है। कर्कशपरिणाम, मृदु परिणाम, रूक्ष परिणाम, स्निग्ध परिणाम, लघु (हल्का)परिणाम, गुरु (भारी) परिणाम, उष्ण परिणाम, शीत परिणाम / (8) अगुरुलघु परिणाम-जो न तो इतना भारी हो कि अधः (नीचे) चला जावे और न इतना लघु (हल्का) हो जो ऊर्ध्व (ऊपर)चला जावे ऐसा अत्यन्त सूक्ष्म परमाणु अगुरुलघु परिणाम कहलाता है। यथा-भाषा,मन,कर्म आदि के परमाणु अगुरुलघुहैं। अगुरुलघु परिणाम को ग्रहण करने से यहाँ पर गुरुलघु परिणाम भी समझ लेना चाहिए / जो अन्य पदार्थ की विवक्षा से गुरु हो और किसी अन्य पदार्थ की विवक्षा से लघु हो उसे गुरुलघु कहते हैं / यथा औदारिक शरीर आदि / (10) शब्द परिणाम-शब्द के रूप में पुद्गलों का परिणत होना। (ठाणांग, सूत्र 713 (पन्नवणा पद 13) 751- अरूपी अजीव के दस भेद (1) धर्मास्तिकाय (2) धर्मास्तिकाय का देश (3) धर्मास्तिकाय का प्रदेश (4) अधर्मास्तिकाय (5) अधर्मास्तिकाय का देश (६)अधर्मास्तिकाय का प्रदेश (7) आकाशास्तिकाय (8) आकाशास्तिकाय का देश (8)आकाशास्तिकाय का प्रदेश (10) काल। (1) धर्मास्तिकाय- गति परिणाम वाले जीव और पुद्गलों को गति करने में जो सहायक हो उसे धर्म कहते हैं / अस्ति नाम है प्रदेश / काय समूह को कहते हैं / गण, काय, निकाय, स्कन्ध, वर्गऔर राशिये सब शब्द काय शब्द के पर्यायवाची हैं। अतः अस्तिकाय यानि प्रदेशों का समूह / सब मिल कर धर्मास्तिकाय शब्द बना हुआ है।

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