Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 470
________________ 458 भी सेठिया जैन ग्रन्थमाला ma अस्त होता है वह पश्चिम दिशा है। सूर्योदय की तरफ मुँह करके खड़े हुए पुरुष के सन्मुख पूर्व दिशा है। उसके पीठ पीछे की पश्चिम दिशा है। उस पुरुष के दाहिने हाथ की तरफ दक्षिण दिशा और बाएं हाथ की तरफ उत्तर दिशा है। पूर्व और दक्षिण के बीच की अग्निकोण, दक्षिण और पश्चिम के बीच की नैऋत कोण, पश्चिम और उत्तर दिशा के बीच की वायव्य कोण, उत्तर और पूर्व दिशा के बीच की ईशान कोण कहलाती है। ऊपर की दिशा ऊर्ध्व दिशा और नीचे की दिशा अघोदिशा कहलाती है। इन दस दिशाओं के गुण निष्पन्न नाम ये हैं (१)ऐन्द्री (२)आग्नेयी (३)याम्या (4) नैऋती(५) वारुणी (6) वायव्य (7) सौम्या(८) ऐशानी (8) विमला (१०)तमा। . पूर्व दिशा का अधिष्ठाता देव इन्द्र है। इसलिए इसको ऐन्द्री कहते हैं। इसी प्रकार अग्निकोण का स्वामी अग्नि देवता है। दक्षिण दिशा का अधिष्ठाता यम देवता है / नैऋत कोण का स्वामी नैऋति देव है। पश्चिम दिशाकाअधिष्ठाता वरुण देव है। वायव्य कोण का स्वामी वायु देव है। उत्तर दिशा का स्वामी सोमदेव है। ईशान कोण का अधिष्ठाता ईशान देव है। अपने अपने अधिष्ठात् देवों के नाम से ही उन दिशाओं और विदिशाओं के नाम हैं। अत एव ये गुणनिष्पन नाम कहलाते हैं। ऊर्ध्व दिशा को विमला कहते हैं क्योंकि ऊपर अन्धकार न होने से वह निर्मल है, अतएव विमला कहलाती है। अघोदिशा तमा कहलाती है। गाढ़ अन्धकार युक्त होने से वह रात्रि तुल्य है अत एव इसका गुण निष्पन्न नाम तमा है। (ठाणांग, सूत्र ७२०)(भगवती शतक 10 उद्देशा 1) (भाचारांग प्रथम श्रुतस्कन्ध अध्ययन 1 उद्देशा 1) 754- कुरुक्षेत्र दस जम्बूद्वीप में मेरु पर्वत से उत्तर और दक्षिण में दो कुरु हैं।

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