Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 461
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 429 ही समझने चाहिएं। तेजस्कायिक और वायुकायिक जीवों में प्रथम तीन लेश्याएं ही होती हैं। शेष बोल ऊपर के समान ही हैं। बेइन्द्रिय जीव- तिर्यश्च गति वाले, बेइन्द्रिय, दो योग वाले, (काय योग और वचन योग वाले), मतिज्ञान तथा श्रुतज्ञान वाले मति अज्ञान, श्रुत अज्ञान वाले, सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि होते हैं। शेष बोल नारकी जीवों की तरह ही हैं। त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय वाले जीवों के भी इसी तरह होते हैं, सिर्फ त्रीन्द्रियों में इन्द्रियाँ तीन और चतुरिन्द्रियों में इन्द्रियाँ चार होती हैं। पञ्चेन्द्रिय तिर्यश्च-गति की अपेक्षा तिर्यश्च गति वाले, लेश्या की अपेक्षा छःलेश्या वाले, चारित्र की अपेक्षा अविरति और देशविरति, वेद की अपेक्षा तीनों वेद वाले होते हैं। बाकी बोल नारकी जीवों की तरह समझने चाहिएं। ___ मनुष्य- मनुष्य गति, पञ्चेन्द्रिय, चार कषाय वाला तथा अकषायी, छः लेश्या वाला तथा लेश्यारहित, तीनों योग वाला तथा अयोगी, दोनों उपयोग वाला, पाँचों ज्ञान वाला तथा तीन अज्ञान वाला, तीन दर्शन वाला, देशचारित्र तथा सर्वचारित्र वाला और अचारित्री और तीनों वेद वाला तथा अवेदी होता है। व्यन्तर देव-गति की अपेक्षा देवगति वाले इत्यादि सबबोल असुरकुमारों की तरह जानने चाहिए। ज्योतिषी देवों में सिर्फ तेजो लेश्या होती है। वैमानिक देवों में छः ही लेश्या होती हैं। शेष बोल अमुरकुमारों की तरह ही जानने चाहिएं। (पनवण्णा परिणाम पद 13 ) (ठाणांग, सूत्र 713) 750- अजीव परिणाम दस __ अजीव अर्थात् जीवरहित वस्तुओं के परिवर्तन से होने वाली उनकी विविध अवस्थाओं को अजीव परिणाम कहते हैं। वे दस प्रकार के हैं। यथा

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