Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 453
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 421 जाते हैं उन्हें धन सम्पत्ति श्रादि से सुखी कर देते हैं और जिन पर ये कुपित हो जाते हैं उन को कई प्रकार से हानि पहुँचा देते हैं। इनके दस भेद हैं(१) अनज़म्भक- भोजन के परिमाण को बढ़ा देने, घटा देने, सरस कर देने या नीरस कर देने आदि की शक्ति . (सामर्थ्य) रखने वाले देव अनज़म्भक कहलाते हैं। / (2) पाणजम्भक-पानी को घटा देने या बढ़ा देने वाले देव। (३)वस्त्रजम्भक-वस्त्र को घटाने बढ़ाने की शक्ति रखने वाले देव / (4) लयणजम्भक-घर मकान आदि की रक्षा करने वाले देव। (5) शयनजम्भक- शय्या आदि की रक्षा करने वाले देव। (6) पुष्पज़म्भक- फूलों की रक्षा करने वाले देव / (7) फलज़म्भक- फलों की रक्षा करने वाले देव / (8) पुष्पफलज़म्भक- फूलों और फलों की रक्षा करने वाले देव / कहीं कहीं इसके स्थान में 'मन्त्रज़म्भक' पाठ भी मिलता है। (8) विद्याज़म्भक-विद्याओं की रक्षा करने वाले देव / (10) अव्यक्तज़म्भक- सामान्य रूप से सब पदार्थों की रक्षा करने वाले देव / कहीं कहीं इसके स्थान में 'अधिपतिजम्भक पाठ भी आता है। (भगवती शतक 14 उद्देशा 8 ) 743- दस महर्दिक देव ___ महान् वैभवशाली देव महर्दिक देव कहलाते हैं। उनके नाम(१) जम्बूद्वीप का अधिपति अनाहत देव (2) सुदर्शन (3) प्रिय दर्शन (4) पौण्डरीक (5) महापौण्डरीक और पाँच गरुड वेणुदेव कहे गये हैं। (ठाणांग, सूत्र 764) 744- दस विमान बारह देवलोकों के दस इन्द्र होते हैं / यह पहले बताया जा

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