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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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क्षयोपशम या उपशम से आत्मा में ज्ञान आदि गुणों का प्रकट होना लब्धि है। इसके दस भेद हैं(१) ज्ञानलब्धि- ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयादि से आत्मा में मतिज्ञानादि का प्रकट होना। (२) दर्शन लब्धि- सम्यक, मिथ्या या मिश्र श्रद्धान रूप
आत्मा का परिणाम दर्शन लब्धि है। ( ३ ) चारित्र लब्धि-- चारित्रमोहनीय कर्म के क्षय, क्षयोपशम या उपशम से होने वाला आत्मा का परिणाम चारित्र लब्धि है। (४) चारित्राचारित्र लब्धि- अप्रत्याख्यानावरणीय कर्म के क्षयादि से होने वाले आत्मा के देशविरति रूप परिणाम को चारित्राचारित्र लब्धि कहते हैं। (५) दान लब्धि-दानान्तराय के क्षयादि से होने वाली लब्धि को दान लब्धि कहते हैं। (६)लाभ लब्धि-लाभान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि। (७) भोग लब्धि- भोगान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि भोग लब्धि है। (८) उपभोग लब्धि-- उपभोगान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि उपभोग लब्धि है। (8) वीर्य लब्धि-- वीर्यान्तराय के क्षयोपशम से होने वाली लब्धि वीर्य लब्धि है। (१०) इन्द्रिय लब्धि- मतिज्ञानावरणीय के क्षयोपशम से प्राप्त हुई भावेन्द्रियों का तथा जाति नामकर्म और पर्याप्त नामकर्म के उदय से द्रव्येन्द्रियों का होना। (भगवती शतक ८ उद्देशा २ ) ६५६- मुण्ड दस
जो मुण्डन अर्थात् अपनयन (हटाना) करे, किसी वस्तु को छोड़े उसे मुण्ड कहते हैं। इसके दस भेद हैं