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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
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पश्चात्कर्म है। देते समय हाथ या बर्तन थोड़े से गीले हो तो स्निग्धदोष है। जल का सम्बन्ध स्पष्ट मालूम पड़ने पर उदकाई दोष है। देते समय अगर हाथ आदि में थोड़ी देर पहले काटे हुए फलों का अंश लगा हो तो वनस्पतिकाय म्रक्षित दोष है।
अचित्त म्रक्षित दो तरह का है। गर्हित और अगर्हित । हाथ आदि या दी जाने वाली वस्तु में कोई घृणित वस्तु लगी हो तो वह गर्हित है। घी आदि लगा हुआ हो तो वह अगर्हित है। इनमें सचित्त प्रक्षित साधु के लिए सर्वथा अकल्प्य है । घृतादि वाला अगर्हित अचित्तम्रक्षित कल्प्य है । घृणित वस्तु वाला गर्हित अकल्प्य है। (३) निक्खित्त (नितिम)- दी जाने वाली वस्तु सचित्त के ऊपर रक्खी हो तो उसे लेना निक्षिप्त दोष है। इसके पृथ्वी"काय आदि छह भेद हैं। (४) पिहिय (पिहित)- देय वस्तु सचित्त के द्वारा ढकी हुई हो। इसके भी पृथ्वीकाय आदि छः भेद हैं। (५) साहरिय-जिस बर्तन में असूजती वस्तु पड़ी हो उस में से अम्जती वस्तु निकाल कर उसी बर्तन से बाहार आदि देना। (६) दायक- बालक आदि दान देने के अनधिकारी से
आहार आदि लेना दायक दोष है। अगर अधिकारी स्वयं बालक के हाथ से आहार आदि बहराना चाहे तो उसमें दोष नहीं है। पिंडनियुक्ति में ४० प्रकार के दायक दोष बताए हैं। वे इस प्रकार हैंबाले बुड्ढे मत्ते उम्मत्ते थेविरे य जरिए य ।
अघिल्लए पगरिए प्रारूढे पाउयाहिं च ॥ ... हथिदुनियलबद्धे विवज्जिए चेव हस्थपाएहिं । : तेरासि गुब्धिणी बालवच्छ भुजंती भुसुलिंती॥