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श्री जैन सिद्धान्त बोल संपह
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तीन दिनों में कालिक सूत्रों का अस्वाध्याय होता है। ये तीन दिन अस्वाध्याय के हैं।
नोट- व्यवहार भाष्य में शुक्ल पक्ष की द्वितीया, तृतीया और चतुर्थी ये तीन तिथियाँ भी यूपक मानी गई हैं। (७)जक्वालित्त (यक्षादीप्त)-कभी कभी किसी दिशा में बिजली के समान जो प्रकाश होता है वह व्यन्तर देव कृत अग्नि दीपन यक्षादीप्त कहलाता है। (८) धृमिता (धूमिका)- कोहरा या धुंवर जिससे अंधेरा सा छा जाता है। (६) महिका- तुषार या बर्फ का पड़ना।
धूमिका और महिका कार्तिक आदि गर्भमासों में गिरती हैं और गिरने के बाद ही मूक्ष्म होने के कारण अप्काय स्वरूप हो जाती हैं। (१०) रय उग्याते (रज उद्घात)- स्वाभाविक परिणाम से रेणु (धूलि)का गिरना रज उद्घात कहलाता है।
उपरोक्त दस अस्वाध्यायों के समय को छोड़ कर स्वाध्याय करना चाहिए, क्योंकि इन अस्वाध्याय के समयों में स्वाध्याय करने से कभी कभी व्यन्तर जाति के देव कुछ उपद्रव कर देते हैं।अतः अस्वाध्याय के समय में स्वाध्याय नहीं करना चाहिये।
_ (ठाणांग, सूत्र ७१४ ) ऊपर लिखे अस्वाध्यायों में से (१) उल्कापात (२) दिग्दाह (३) विद्युत् (४) यूपक और (५) यक्षादीप्स इन पाँच में एक पौरुषी तक अस्वाध्याय रहता है। गर्जित में दो पौरुषी तक । निर्यात में अहोरात्र तक धूमिता,महिका और रज उद्घात में जितने समय तक ये गिरते रहें तभी तक अस्वाध्याय काल रहता है।
( व्यवहार भाष्य और नियुक्ति उद्देशा ६) (प्रवचनसारोद्धार द्वार २६८)