Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 433
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह 401 हैं। जो जिस गण में है उसकी उस नाम से स्थापना करना गण स्थापना है / जैसे-मल्ल, मल्लदत्त इत्यादि। (च) जीवन हेतु- जिसके यहाँ सन्तान पैदा होते ही मर जाती है, वहाँ सन्तान को जीवित रखने के लिए विचित्र नाम रक्खे जाते है / जैसे--कचरामल, कचरोशाह, पूंजोशाह, ऊकरडोशाह इत्यादि। इसी प्रकार उज्झितक (छोड़ा हुआ), शूर्पक (छाज में डाल कर छोड़ा हुआ) वगैरह नाम भी जानने चाहिएं। (छ) अभिप्राय स्थापना-- जो नाम बिना किसी गुण या जाति वगैरह के भिन्न भिन्न देशों में अपने अपने अभिप्राय के अनुसार प्रचलित हैं, उन्हें अभिप्राय स्थापना कहते हैं। जैसे--आम,नीम निम्बू वगैरह वृक्षों के नाम / द्रव्य प्रमाण- शास्त्रों में जिस द्रव्य का जो नाम बताया गया है, उसे द्रव्यप्रमाण नाम कहते हैं। इसके छः भेद हैं-धर्मास्तिकाय, अधमर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और काल। - भाव प्रमाण-शब्द की व्याकरणादि से व्युत्पत्ति करने के बाद जो अर्थ निकलता है उसे भावप्रमाण कहते हैं। इसके चार भेद हैं- सामासिक, तद्धितज, धातुज और नैरुक्त। ___समासज-दो या बहुत पदों के मिलाने को समास कहते हैं। इसके सात भेद हैं(क) द्वन्द- जहाँ समान विभक्ति वाले दो पदों का समुच्चय हो उसे द्वन्द्व कहते हैं। जैसे-दन्त और प्रोष्ठ का द्वन्द्व होने से दन्तौष्ठ हो गया। इसी तरह स्तनोदर (स्तन और उदर), वस्त्रपात्र, अश्वमहिष (घोड़ा और भैंसा),अहिनकुल (साँप और नेवला) इत्यादि। (ख) बहुव्रीहि-जिस समास में समस्त पदों के अतिरिक्त कोई तीसरा पदार्थ प्रधान हो उसे बहुव्रीहि कहते हैं। जैसे- जिस

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