Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 434
________________ 402. श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला ... Amnew गिरि में कुटज और कदम्ब खिले हैं उसे 'पुष्पितकुटजकदम्ब' कहा जाता है। यहाँसमस्त पदों के अतिरिक्त गिरि अर्थ प्रधान है। (ग) कर्मधारय-समानाधिकरण तत्पुरुष को कर्मधारय कहते हैं। जैसे- धवलवृषभ (सफेद बैल)। (घ) द्विगु-जिस समास का पहला पद संख्यावाचक हो उसे द्विगु कहते हैं / जैसे- त्रिमधुर, पञ्चमूली।। (ङ) तत्पुरुष-उत्तरपद प्रधान द्वितीयादि विभक्त्यन्त पदों के समास को तत्पुरुष कहते हैं / जैसे- तीर्थकाक इत्यादि। (च) अव्ययोभाव-- जिसमें पहले पद का अर्थ प्रधान हो उसे अव्ययीभाव कहते हैं। जैसे- अनुग्रामम् (ग्राम के समीप) अनुनदि (नदी के समीप) इत्यादि। (छ) एकशेष- एक विभक्ति वाले पदों का वह समास जिस में एक पद के सिवाय दूसरे पदों का लोप हो जाता है, एक शेष कहलाता है / जैसे- पुरुषो (पुरुषश्च पुरुषश्च) दो पुरुष / सद्धितज- जहाँ तद्धित से व्युत्पत्ति करके नाम रक्खा जाय उसे तद्धितज भावप्रमाण कहते हैं। इसके आठ भेद हैं(क) कर्म-जैसे दृष्य अर्थात् कपड़े का व्यापारी दौषिक कहलाता है। सूत बेचने वाला सौत्रिक इत्यादि। (ख) शिल्पज-जिसका कपड़े बुनने का शिल्प है उसे वास्त्रिक कहा जाता है। तन्त्री बनाने वाले को तान्त्रिक इत्यादि / (ग) श्लाघाज-प्रशंसनीय अर्थ के बोधक पद / जैसे-श्रमण आदि। (घ) संयोगज-जो नाम दो पदों के संयोग से हो / जैसे-राजा का ससुर / भगिनीपति इत्यादि। (ङ) समीपज- जैसे गिरि के समीप वाले नगर को गिरिनगर कहा जाता है। विदिशा के समीप का वैदिश इत्यादि। (च) संयूथज- जैसे तरङ्गवतीकार इत्यादि /

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