Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 435
________________ श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह (छ) ऐश्चर्यज-जैसे राजेश्वर आदि / (ज) अपत्यज- जैसे तीर्थङ्कर जिसका पुत्र है उसे तीर्थङ्कर माता कहा जाता है। . धातुज- 'भू' आदिधातुओं से बने हुए नाम धातुज कहलाते हैं / जैसे भावकः। नैरुक्त-नाम के अक्षरों के अनुसार निश्चित अर्थ का बताना निरुक्त है / निरुक्त से बनाया गया नाम नैरुक्त कहलाता है। जैसेजो मही(पृथ्वी) पर सोवे उसे महिष कहा जाता है इत्यादि। (अनुयोगद्वार सूत्र 130) ७२०-अनन्तक दस जिस वस्तु का संख्या आदि किसी प्रकार से अन्त न हो उसे अनन्तक कहते हैं / इसके दस भेद हैं(१)नामानन्तक-सचेतन या अचेतन जिस वस्तु का 'अनन्तक' यह नाम है उसे नामानन्तक कहा जाता है। (2) स्थापनानन्तक- अत वगैरह में 'अनन्तक' की स्थापना करना स्थापनानन्तक है। (3) द्रव्यानन्तक-जीव और पुद्गल द्रव्य में रहने वाली अनन्तता को द्रव्यानन्तक कहते हैं। जीव और पुद्गल दोनों द्रव्य की अपेक्षा अनन्त हैं। (४)गणनानन्तक-एक, दो, तीन, संख्यात, असंख्यात,अनन्त इस प्रकार केवल गिनती करना गणनानन्तक है। इस में वस्तु की विवक्षा नहीं होती। (5) प्रदेशानन्तक- आकाश के प्रदेशों में रहने वाले आनन्त्य को प्रदेशानन्तक कहते हैं। (6) एकतोऽनन्तक- भूतकाल या भविष्यत् काल को एकतोऽनन्तक कहते हैं, क्योंकि भूत काल आदि की अपेक्षा अनन्त है

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