Book Title: Jain Siddhanta Bol Sangraha Part 03
Author(s): Bhairodan Sethiya
Publisher: Jain Parmarthik Sanstha Bikaner

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Page 428
________________ 396 श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला मांस को खाने वाला न होने पर भी ढाक का पत्ता पलाश कहा जाता है, इत्यादि। (3) आदानपद-जिस पद से जो शास्त्र या प्रकरण आरम्भ हो, उसी नाम से उसे पुकारना आदानपद है। जैसे- आचारांग के पाँचवे अध्ययन का नाम 'आवंती' है। वह अध्ययन 'आवंती के यावंती' इस प्रकार 'श्रावंती' पद से शुरू होता है। इस लिए इस / का नाम भी 'पावंती' पड़ गया। उत्तराध्ययन के तीसरे अध्ययन का नाम 'चाउरंगिज्ज है। इसका प्रारम्भ 'चत्तारि परमंगाणि, दुल्लहाणीह जंतुणो' इस प्रकार चार अंगों के वर्णन से होता है। उत्तराध्ययन के चौथे अध्ययन का नाम 'असंखयं' है, क्योंकि वह 'असंखयं जीविय मा पमायएं इस प्रकार 'असंवयं' शब्द से शुरू होता है। इसी प्रकार उत्तराध्ययन, दशवैकालिक और सूयगडांग वगैरह के अध्ययनों का नाम जानना चाहिए। (4) विपक्षपद-- विवक्षित वस्तु में जो धर्म है, उससे विपरीत धर्म बताने वाले पद को विपक्ष पद नाम कहते हैं / जैसे शृगाली अशिवा (अमङ्गल) होने पर भी उसे शिवा कहा जाता है। अमङ्गल का परिहार करने के लिए इस प्रकार शब्दों का परिवर्तन नौ स्थानों में होता है। ग्राम, आकर (लोहे वगैरह की खान) नगर, खेड़ (वेड़ा जिसका परकोटा धृली का बना हुआ हो) कर्वट (खराब नगर) मडम्ब (गाँव से दूर दूसरी आवादी) द्रोणमुख- जिस स्थान पर पहुँचने के लिए जल और स्थल दोनों प्रकार के मार्ग हों। पत्तन-जहाँवाहर के देशों से आई हुई वस्तुएं बेची जाती हों। वह दो तरह का होता है-जलपत्तन और स्थल पत्तन / आश्रम (तपस्वियों के रहने का स्थान)।सम्बाध (विविध * प्रकार के लोगों के भीड़ भड़क्के का स्थान)। सन्निवेश (भील आदि लोगों के रहने का स्थान)। उपरोक्त ग्राम आदि जब नए बसाए जाते

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