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भी जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
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(८) महाशतक (1) नन्दिनीपिता (१०) सालिहिपिया (शालेयिका पिता)। इन सबका वर्णन उपासकदशांग मूत्र में है। उसके अनुसार यहाँ दिया जाता है। (१) आनन्द श्रावक- इस जम्बूद्वीप के भरतक्षेत्र में भारतभूमि का भूषणरूप वाणिज्य नाम का एक ग्राम था । वहाँ जितशत्रु राजा राज्य करता था। उसी नगर में पानन्द नाम का एक सेठ रहता था। कुबेर के समान वह ऋद्धि सम्पत्तिशाली था। नगर में वह मान्य एवं प्रतिष्ठित सेठ था। प्रत्येक कार्य में लोग उसकी सलाह लिया करते थे।शील सदाचारादि गुणों से शोभित शिवानन्दा नाम की उसकी पत्नीथी।आनन्द के पास चार करोड़(कोटि) सोनैया निधानरूप अर्थात् खजाने में था, चार करोड़ सोनये का विस्तार (द्विपद, चतुष्पद, धन, धान्य आदि की सम्पत्ति) था और चार करोड़ सोनये से व्यापार किया जाता था। गायों के चार गोकुल (एक गोकुल में दस हजार गायें होती हैं) थे। वह धर्मिष्ठ और न्याय से व्यापार चलाने वाला तथा सत्यवादी था। इसलिए राजा भी उसका बहुत मान करता था। उसके पाँच सौ गाड़े व्यापार के लिए विदेश में फिरते रहते थे और पाँच सौ यास वगैरह लाने के लिए नियुक्त किये हुए थे । समुद्र में व्यापार करने के लिए चार बड़े जहाज थे । इस ऋद्धि से सम्पन्न प्रानन्द श्रावक अपनी पत्री शिवानन्दा के साथ आनन्द पूर्वक जीवन व्यतीत करता था।
एक समय श्रमणभगवान महावीर स्वामी वाणिज्यग्राम के बाहर उद्यान में पधारे। देवताओं ने भगवान् के समवसरण की रचना की। भगवान् के पधारने की सूचना मिलते ही जनता वन्दना के लिये गई। जितशत्र राजा भी बड़ी धूमधाम और उत्साह के साथ भगवान् को वन्दना करने के लिये गया। खबर पाने पर मानन्द