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श्री सेठिया जैन ग्रन्थमाला
लगाकर ऊपर को मुख खोल दिया जाय और उसकी हवा निकाल दी जाय । ऊपर के खाली भाग में पानी भरकर वापिस मुँह बंद कर दिया जाय और बीच की गांठ खोल दी जाय। अब मशक के नीचे के भाग में हवा और हवा पर पानी रहा हुआ है । अथवा जैसे हवा से फूली हुई मशक को कमर पर बाँध कर कोई पुरुष अथाह पानी में प्रवेश करे तो वह पानी की सतह पर ही रहता है। इसी प्रकार आकाश और वायु आदि
भी आधाराधेय भाव से अवस्थित हैं। ६२२- अहिंसा भगवतो की आठ उपमाएं
हिंसा से विपरीत अहिंसा कहलाती है, अर्थात्-- 'प्रमत्तयोगात्पाणव्यपरोपणं हिंसा' मन, वचन, काया रूप तीन योगों से प्राणियों के दस प्राणों में से किसी प्राण का विनाश करना हिंसा है। इसके विपरीत अहिंसा है। उसका लक्षण इस प्रकार है -- 'अप्रमत्ततया शुभयोगपूर्वकं प्राणाऽव्यपरोपणमहिंसा' अप्रमत्तता (सावधानता) से शुभयोग पूर्वक प्राणियों के प्राणों को किसी प्रकार कष्ट न पहुँचाना एवं कष्टापन्न प्राणी का कष्ट से उद्धार कर रक्षा करना अहिंसा कहलाती है। समुद्र के अगाध जल में डूबते हुए हिंसक जलजीवों से त्रस्त एवं महान तरङ्गों से इतस्ततः उछलते हुए प्राणियों के लिए जिस तरह द्वीप आधार होता है उसी प्रकार संसार रूपी सागर में डूबते हुए, सैकड़ों दुःखों से पीड़ित, इष्ट वियोग अनिष्ट संयोग रूप तरङ्गों से भ्रान्तचित्त एवं पीड़ित प्राणियों के लिए अहिंसा द्वीप के समान आधारभूत होती है अथवा जिस तरह अन्धकार में पड़े हुए प्राणी को दीपक अन्धकार का नाश कर इष्ट पदार्थ को ग्रहण कराने आदि में प्रवृत्ति करवाने में कारणभूत होता है। इसी प्रकार ज्ञानावरणीयादि अन्धकार को नष्ट कर विशुद्धबुद्धि