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श्री सेठिया जैन प्रन्थमाला
की हैं किन्तु विशिष्ट गुण और उपाधि को प्रधान मानकर आत्मा के आठ भेद बताये गये हैं। वे इस प्रकार हैं(१) द्रव्यात्मा- त्रिकालवी द्रव्य रूप आत्मा द्रव्यात्मा है। यह द्रव्यात्मा सभी जीवों के होती है। (२) कषायात्मा- क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय विशिष्ट
आत्मा कपायात्मा है। उपशान्त एवं क्षीण कपाय आत्माओं के सिवाय शेष सभी संसारी जीवों के यह आत्मा होती है । (३) योगात्मा- मन वचन काया के व्यापार को योग कहते हैं। योगप्रधान आत्मा योगात्मा है। योग वाले सभी जीवों के यह आत्मा होती है । अयोगी केवली और सिद्धों के यह आत्मा नहीं होती, क्योंकि ये योग रहित होते हैं। (४) उपयोगात्मा- ज्ञान और दर्शन रूप उपयोग प्रधान आत्मा उपयोगात्मा है। उपयोगात्मा सिद्ध और संसारी सम्यग्दृष्टि
और मिथ्यादृष्टि सभी जीवों के होती है। ( ५ ) ज्ञानात्मा-विशेष अनुभव रूप सम्यग्ज्ञान से विशिष्ट आत्मा को ज्ञानात्मा कहते हैं । ज्ञानात्मा सम्यग्दृष्टि जीवों के होती है । (६)दर्शनात्मा-सामान्य अवबोध रूप दर्शन से विशिष्ट आत्मा को दर्शनात्मा कहते हैं। दर्शनात्मा सभी जीवों के होती है । (७) चारित्रात्मा- चारित्र गुण विशिष्ट आत्मा को चारित्रात्मा कहते हैं । चारित्रात्मा विरति वालों के होती है। (८) वीर्यात्मा- उत्थानादि रूप कारणों से युक्त वीर्य विशिष्ट
आत्मा को वीर्यात्मा कहते हैं। यह सभी संसारी जीवों के होती है। यहाँ वीर्य से सकरण वीर्य लिया जाता है। सिद्धात्माओं के सकरण वीर्य नहीं होता,अतएव उनमें वीर्यात्मा नहीं मानी गई है। उनमें भी लब्धि वीर्य की अपेक्षा वीर्यात्मा मानी गई है।
आत्मा के आठ भेदों में परस्पर क्या सम्बन्ध है ? एक भेद