________________
मो जैनसिद्धान्त बोल संग्रह
११५
चञ्चलता को दूर कर उसे किसी एक ही बात में लगाना या उसके व्यापार को एक दम रोक देना योग है। योग के आठ अङ्ग हैं । इनका क्रमशः अभ्यास करने से ही मनुष्य योग प्राप्त कर सकता है। वे इस प्रकार हैं
(१) यम (२) नियम (३) आसन (४) प्राणायाम (५) प्रत्याहार (६) धारणा (७) ध्यान (5) समाधि । (१) यम- अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह ये पाँच यम हैं । इनका पालन करने से आत्मा दृढ़ तथा उन्नत होता है और मन संयत होता है। (२) नियम- शौच, सन्तोष, तप, स्वाध्याय और भगवान् की भक्ति ये नियम हैं । इनसे मन संयत होता है । इन दोनों के अभ्यास के बाद ही मनुष्य योग सीखने का अधिकारी होता है। जो व्यक्ति चञ्चल मन वाला, विषयों में गृद्ध तथा अनियमित
आहार विहार वाला है वह योग नहीं सीख सकता। (३) आसन- आरोग्य तथा मन की स्थिरता के लिए शरीर के व्यायाम विशेष को आसन कहते हैं । शास्त्रों में बताया गया है कि जितने प्राणी हैं उतने ही आसन हैं । इसलिए उनकी निश्चित संख्या नहीं बताई जा सकती। कई पुस्तकों में चौरासी योगासन दिए हैं। कहीं कहीं बत्तीस मुख्य बताए हैं। यहाँ हेभचन्द्राचार्य कृत योग शास्त्र में बताए गए योग के उपयोगी कुछ आसनों का स्वरूप दिया जाता है। (क) पर्यङ्कासन-दोनों पैर घटनों के नीचे हों, हाथ नाभि के पास हों, बाएं हाथ पर दाहिना हाथ उत्तान रक्खा हो तो उसे पर्यङ्कासन कहते हैं। भगवान् महावीर का निर्वाण के समय यही
आसन था। पतञ्जलि के मत से हाथों को घुटनों तक फैलाकर सोने का नाम पर्यङ्कासन है।