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श्री जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
सार भाग भी सात धातुओं में परिणत होता है । इसी प्रकार कर्म भी जोव से ग्रहण किये जाकरशुभाशुभ रूप में परिणत होते हैं। ___ जीव और कर्मका अनादि सम्बन्ध-कर्म सन्तति का आत्मा के साथ अनादि सम्बन्ध है । यह कोई नहीं बता सकता कि कम का आत्मा के साथ सर्व प्रथम कब सम्बन्ध हुआ ? जीव सदा क्रियाशील है। वह सदा मन वचन काया के व्यापारों में प्रवृत्त रहता है इससे उसके प्रत्येक समय कर्मबन्ध होता रहता है, इस तरह कर्म सादि हैं । पर यह सादिपना कर्मविशेष की अपेक्षा से है। कर्मसन्तति तो जीव के साथ अनादि काल से है। पुराने कर्म तय होते रहते हैं और नये कर्म बंधते रहते . हैं । ऐसा होते हुए भी सामान्य रूप से तो कर्म सदा से जीव . के साथ लगे हुए ही रहे हैं।
देह कर्म से होता है और देह से कर्म बंधते हैं। इस प्रकार देह और कर्म एक दूसरे के हेतु हैं । इसलिये इन दोनों में हेतुहेतुमद्भाव सम्बन्ध है । जो हेतुहेतुमद्भाव सम्बन्ध वाले होते हैं वे अनादि होते हैं, जैसे बीज और अंकुर, पिता और पुत्र । देह और कर्म भी हेतुहेतुमद्भाव सम्बन्ध वाले होने से अनादि हैं । इस हेतु से भी कर्म का अनादिपना सिद्ध है। ___ यदि कर्मसन्तति को सादि माना जाय तो कर्म से सम्बद्ध होने के पहिले जीव अत्यन्त शुद्ध बुद्ध निज स्वरूपमय रहे होंगे। फिर उनके कर्म से लिप्त होने का क्या कारण है ? यदि अपने
शुद्ध स्वरूप में रहे हुए जीव भी कर्म से लिप्त हो सकते .. हैं तो मुक्त जीव भी कर्म से लिप्त होने चाहिएं। ऐसी अवस्था
में मुक्ति का कोई महत्त्व न रहेगा एवं मुक्ति के लिए बताई गई शास्त्रोक्त क्रियाएं निष्फल होंगी। इसके सिवाय सादि कर्मप्रवाह मानने वाले लोगों को यह भी बताना होगा कि