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भी जैन सिद्धान्त बोल संग्रह
(७) सत्याग्रह- हमेशा सत्य दात को स्वीकार करने के लिए तैयार रहना चाहिए। (८) सहिष्णुता- सहनशील और धैर्य वाला होना चाहिए। क्रोधी नहीं होना चाहिए । ( उत्तराध्ययन अध्ययन ११ गा• ४-५ ) ५८५- उपदेश के योग्य आठ बातें
शास्त्र तथा धर्म को अच्छी तरह जानने वाला मुनि साधु, श्रावक तथा सर्वसाधारण को इन आठ वातों का उपदेश दे(१)शान्ति- अहिंसा अर्थात् किसी जीव को कष्ट पहुँचाने की इच्छा न करना। (२) विरति- पाँच महावतों का पालन करना । (३) उपशम- क्रोधादि कषायों तथा नोकषायों पर विजय प्राप्त करना। इसमें सभी उत्तर गुण आजाते हैं। (४) निर्वृत्ति-निर्वाण । मूल गुण और उत्तर गुणों के पालन से इस लोक और परलोक में होनेवाले सुखों को बताना । (५) शौच- मन, वचन और काया को पाप से मलीन न होने देना और दोष रहित शुद्ध व्रतों का पालन करना। (६) आजैव- सरलता । माया और कपट का त्याम करना। (७) मार्दव- स्वभाव में कोमलता । मान और दुराग्रह (ठ) का त्याम करना। (८) लाघव- आभ्यन्तर और बाह्य परिग्रह का त्याग करके लघु अर्थात् हल्का हो जाना । (प्राचारोग सूत्र अध्ययन ६ उद्देशा १) ५८६-एकलविहार प्रतिमा के आठ स्थान
जिनकल्पप्रतिमा या मासिकी प्रतिमा आदि अङ्गीकार करके साधु के अकेले विचरने रूप अभिग्रह को एकलविहार प्रतिमा कहते हैं। समर्थ और श्रद्धा तथा चारित्र आदि में दृढ़ साधु ही