Book Title: Jain Sahitya aur Itihas par Vishad Prakash 01
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Shasan Sangh Calcutta

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Page 12
________________ जैनसाहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश उत्तरमें-अनन्तर-जिसके) इस नामसे भी उल्लेखित किया गया है, और सौम्य ग्रह अपने उच्चस्थान पर स्थित थे; जैसा कि श्रीपूज्यपादाचार्यके निम्न वाक्यसे प्रकट है : चैत्र-सितपक्ष-फाल्गुनि शशांकयोगे दिने त्रयोदश्याम् । जज्ञे स्वोच्चस्थेषु ग्रहेषु सौम्येषु शुभलग्ने ॥५॥ -निर्वाणभक्ति तेजःपुञ्ज भगवान्के गर्भमें आते ही सिद्धार्थ राजा तथा अन्य कुटुम्बीजनोंकी श्रीवृद्धि हुई-उनका यश, तेज, पराक्रम और वैभव बढ़ा-माताकी प्रतिभा चमक उठी, वह सहज ही में अनेक गूढ प्रश्नोंका उत्तर देने लगी, और प्रजाजन भी उत्तरोत्तर सुख-शान्तिका अधिक अनुभव करने लगे। इससे जन्मकालमें आपका सार्थक नाम 'वर्द्धमान' रक्खा गया। साथ ही, वीर महावीर और सन्मति जैसे नामोंकी भी क्रमशः सष्टि हुई, जो सब आपके उस समय प्रस्फुटित तथा उच्छलित होनेवाले गुरणों पर ही एक आधार रखते है । ____ महावीरके पिता 'णात' वंशके क्षत्रिय थे। 'णात' यह प्राकृत भाषाका शब्द है और 'नात' ऐसा दन्त्य नकारसे भी लिखा जाता है। संस्कृतमें इसका पर्यायरूप होता है 'ज्ञात'। इसीसे 'चारित्रभक्ति' में श्री पूज्यपादाचार्यने "श्रीमज्ञातकुलेन्दना" पदके द्वारा महावीर भगवान्को 'ज्ञात' वंशका चन्द्रमा लिखा है, और इसीसे महावीर 'रणातपुत' अथवा 'ज्ञातपुत्र' भी कहलाते थे, जिसका बौद्धादि ग्रन्थों में भी उल्लेख पाया जाता है। इस प्रकार वंशके ऊपर नामोंका उस समय चलन था-बुद्धदेव भी अपने वंश परसे 'शाक्यपुत्र' कहे जाते थे। प्रस्तु; इस 'नात' का ही बिगड़ कर अथवा लेखकों या पाठकोंकी नासमझीकी वजहसे बादको 'नाथ' रूप हुअा जान पड़ता है। और इसीसे कुछ ग्रन्थोंमें महावीरको नाथवंशी लिखा हुआ मिलता है, जो ठीक नहीं है। महावीरके बाल्यकालकी घटनाओंमेसे दो घटनाएँ खास तौरसे उल्लेखयोग्य है-एक यह कि, संजय और विजय नामके दो चारण-मुनियोंको तत्त्वार्थ-विष्यक कोई भारी संदेह उत्पन्न हो गया था, जन्मके कुछ दिन बाद ही जब उन्होंने प्रापको देखा तो आपके दर्शनमात्रसे उनका वह सब सन्देह तत्काल दूर हो गया और इस • देखो, गुणभद्राचार्यकृत महापुराणका ७४वा पर्व ।

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