Book Title: Jain Sahitya Ka Bruhad Itihas Part 2
Author(s): Jagdishchandra Jain, Mohanlal Mehta
Publisher: Parshwanath Shodhpith Varanasi
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जैन साहित्य का वृहद् इतिहास सेनापति ने हाथ जोड़कर राजा कुणिक की आज्ञा शिरोधार्य की। उसने महावत को बुलाया और शीघ्र ही हस्तिरत्न तथा चातुरङ्गिणी सेना को सजित करने का आदेश दिया। सेनापति की आज्ञा पाकर महावत ने हस्तिरत्न को उज्ज्वल वस्त्र पहनाये, कवच से सजाया, वक्षस्थल में रस्सी बाँधी, गले में आभूषण और कानों में कर्णपूर पहनाये, दोनों ओर झूल लटकायी, अस्त्र-शस्त्रों और ढाल से सजित किया, छत्र, ध्वजा और घण्टे लटकाये तथा पाँच शिखाओं से उसे विभूषित किया । चातुरङ्गिणी सेना के सजित हो जाने पर महावत ने सेनापति को खबर दी। इसके बाद सेनापति ने यानशालिक को बुलाकर उसे सुभद्रा आदि रानियों के लिए यानों को सजित करने का आदेश दिया। सेनापति की आज्ञा पाकर यानशाला के अधिकारी ने यानशाला में जाकर यानों का निरीक्षण किया, उन्हें झाड़-पोंछकर बाहर निकाला और उनके ऊपर के वस्त्र हटाकर उन्हें सजाया । तत्पश्चात् वह वाहनशाला में गया, बैलों को बाहर निकाल कर उसने उनके ऊपर हाथ फेरा, उन्हें वस्त्रों से आच्छादित किया और अलंकार पहनाये । इसके बाद बैलों को यानों में जोड़ा, बहलवानों के हाथ में आर (पओदलहि-प्रतोदयष्टि) दी और यानों को मार्ग पर लाकर खड़ा कर दिया। सेनापति ने नगररक्षकों को बुलाकर उन्हें नगर में छिड़काव आदि करने का आदेश दिया। सब तैयारी हो जाने पर सेनापति ने राजा कूणिक के पास पहुंचकर सविनय निवेदन किया कि महाराज गमन के लिए तैयार हो जायँ ( ३०)।
यह सुनकर राजा कूणिक ने व्यायामशाला में प्रवेश किया। यहाँ कुश्ती भादि विविध व्यायाम करके थक जाने के पश्चात् उसने शतपाक, सहस्रपाक आदि सुगन्धित और पुष्टिकारक तेलों द्वारा कुशल तैलमर्दकों से शरीर की मालिश करवाई और कुछ समय बाद थकान दूर हो जाने पर वह व्यायामशाला से निकला । तत्पश्चात् वह स्नानागार में गया । वहाँ मणि-मुक्ताजटित स्नानमण्डप में प्रवेश किया और रत्नजटित स्नानपीठ पर आसीन हो सुगन्धित जल द्वारा विधिपूर्वक स्नान किया। फिर रुंएदार मुलायम तौलिये से अपने शरीर को पोंछकर गोशीर्ष चन्दन का लेप किया, बहुमूल्य नये वस्त्र धारण किये, सुगन्धित माला पहनी, गले में हार, बाहुओं में बाहुबन्द, उँगलियों में मुद्रिकाएँ, कानों में कुण्डल, सिर पर मुकुट और हाथों में वीरवलय धारण किये। सिर पर छत्र लगाया गया, चमर डुलाये गये और इस प्रकार जय-जय शब्दपूर्वक राजा स्नानागार से बाहर निकला। तत्पश्चात् कूणिक अनेक गगनायक, दण्डनायक, माण्डलिक, राजा, युवराज, कोतवाल, सीमाप्रान्त के राजा, परिवार के स्वामी,
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