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वन्दे श्रीवीरमानन्दम् ।
* भूमिका
नमः सत्योपदेशाय, सर्वभूतहितैषिणे।
वीतदोषाय वीराय, विजयानन्दसूरये ॥ वर्तमान समय मुद्रण युग कहा जाता है । इसमें विविध विषयोंके अनेक बहुमूल्य ग्रन्थ भिन्न भिन्न संस्थाओं द्वारा छपकर प्रकाशित हो रहे हैं। आबालवृद्ध सभी मुद्रणकलासे मुद्रित ग्रन्थ ही पढ़ना चाहते हैं । सुंदर स्याही, बढ़िया कागज मनोहर अक्षर और लुभावनी बाइंडिंगसे अलंकृत पुस्तकें सबसे पहले पढ़ी जाती हैं । इस मुद्रणकलाने अपनी प्राचीन हस्तलिखित कलाको इतना धक्का पहुँचाया है कि जिसका वर्णन करना दुष्कर है । __ यह स्पष्ट है कि पुरानी लिखाईके जमानेमें पुस्तकें इतनी ही दुर्लभ, और महँगी थीं जितनी आज सुलभ और सस्ती हैं। आज हर एक आसानीसे पुस्तकें पढ़ सकता है । उस जमानेमें बड़ी कठिनतासे पुस्तकें पढ़नेको मिलती थीं । यदि किसीसे एक पुस्तक लेनी होती थी तो अधिक खुशामद करनी पड़ती थी । आज भी-ऐसे सुलभताके समयमें भी प्राचीन भंडारोंसे हस्तलिखित पस्तकें निकलवाते काफी अनुभव हो रहा है। पसीना उतरता है तब जाकर संरक्षकोंको दया आजावे तो पुस्तक नीकालके देते हैं। वह भी आधी या पाव संपूर्ण
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