Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 24
________________ सैन जीवन ध्यानस्थ गुफामें-श्री बाहुबलि घर श्री यायलि युद्ध में विजयी होकर सयमी तो यन गये. किन्तु अभिमानत्व हाथीसे नहीं उतर सके। उन्होंने मोचा-यदि भगवान के पास जाऊँगा तो छोटे भाई जो मेरेसे पहले साधु बने हैं, उन्हें नमस्कार करना पडेगा। ऐसा विचार करके वे महामुनि ध्यानस्थ होगये। तिभाकार खडे खडे उनको एक वर्ष बीत गया। उनके शरीर पर बेलियाँ दा गई, पक्षिोंने घोंसले बना लिए, सोर मटाने लगे तथा हाथी, मिह, चीते वगैरह कोई यम्मा समझपर उमा महारा लेकर अपने शरीर को खुजलाने लगे। भाई ! हाथीसे उतगे इतना कुछ होने पर भी महामुनि मेरुवत् निश्चल रहे। फिर भी केवलज्ञान नहीं हुश्रा । एक दिन प्रस्मात् पापाज श्राई. भाई। हाथीसे उतरो अन्यथा मुशि नहीं मिलेगी। सुनते ही मुनि चमके और विचार करने लगे। अरे । यह क्या ? कहां है. शादी में दो सायुहूँ और एकवर्षसे भूना-प्यामा ग्यदा हूँ । प्रचार करनेवाली मी प्राधी-सुन्दरी माधिया है जो "प्रसत्य तो योल ही नहीं सकतीं। बस, समझ गये और नान हाथी से पतर कर क्यों ही अपने छोटे माउयोको बन्दना करने लगे, उन्हें वहीं पर केवलज्ञान हो गया। फिर भगवान के दर्शन किये एवं अन्त मे मुक्तियामको प्राप्त हुए।

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