Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

View full book text
Previous | Next

Page 96
________________ ४ जैन-जीवन . घसीटना और मुहमें थूकते हुए कहना कि यह मखलिपुत्र-गोशालक पाखण्टी था, धोखेबाज था और इसने झूठा ढोग करके टुनियाको ठगा था। यदि तुम मेरे सच्चे भक्त हो तो उक्त कार्य अवश्य करना। ऐसे अपनी निन्दा करता हुआ गोशालक मरकर बारहने स्वर्गमें उत्पन्न हुआ। भक्तोंने मकानके अन्दर नगरकी कल्पना करके गुप्तरूपसे अपने गुरुकी आज्ञाका पालन किया। गोलिक स्वर्गसे च्यवकर विमलवाह्न नामक राजा होगा, वह सुमंगल नामक मुनिको सताएगा और मुनि द्वारा भस्म किया जा कर सातवें नरकमे जाएगा। फिर चारों गतियोंमे खूब भटककर अन्तमे सिद्ध, बुद्ध एव मुक्त होगा।

Loading...

Page Navigation
1 ... 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117