Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 98
________________ ८६ जैन-जीवन कहा। वे विछा ही रहे थे कि उसने व्याकुलतावश पूछा- विचा दिया विछौना ? उत्तर मिला-जी। विछा रहे हैं। यह उत्तर सुनकर जमालि सोचने लगा कि भगवान महावीर जो किज्जमाणे को कहते हैं वह असत्य है क्योंकि जवतंक कार्य पूर्ण नहीं होता तब तक फलदायक नहीं हो सकता । वस, मोहकर्मके उदयसे जमालि उल्टे रास्ते चढ़ गया और महावीर झूठे है एव मै सच्चा हूँ ऐसे अपने साधुओंसे कहने लगा। साधुओंने उसे बहुत सम. झाया, लेकिन वह नहीं माना, तव बहुत सारे साधु उसको छोड़कर भगवान्की शरणमे आ गये। इधर साध्वी-प्रियदर्शना भी जमालिकी बात पर विश्वास करके प्रभुसे अलग हो गई और जमालिके सिद्धान्तोंका प्रचार करने लगी। कुम्हारकी युक्ति एक बार वह ढक कुम्हारके यहां ठहरी हुई थी। कुम्हार भगवान्का श्रावक था। एक दिन उसने प्रियदर्शनाको समझानेके लिए उनकी पछेवड़ीके एक कौने पर आग लगा दी और वह जलने लगी। तब चौंककर प्रियदर्शनाने कहा-अरे रे ।। पछेवड़ी जल गई । सुनते ही कुम्हार बोला- महासतीजी! आप क्या फरमा रही हैं ? जमालिके सिद्धान्तसे, तो पछेवड़ी जलने लग गयी ऐसे कहना चाहिये, किन्तु जलते हुएको जलगया कहनां उचित नहीं है।

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