Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 101
________________ प्रसङ्ग बाईसवां गुरुजीसे प्रार्थना करने लगे-प्रभो ! संसार झूठा है । मै इससे उद्विग्न हो गया हूँ अतः साधु बनूगा। यों कहकर आजीवन ब्रह्मचारी रहनेका संकल्प किया। फिर घर आकर माता-पितास दीक्षाकी आज्ञा मांगने लगे। बात सुनते ही मां-बाप मूञ्छित हो गये। घरमें हा-हाकार मच गया और कुमारको बहुत समझाया गया, किन्तु वे तो टससे मस भी नही हुए । अन्तमे केवल विवाह करनेका आग्रह किया गया । तब माता-पिताका मन रखने के लिए कुमारने कहा- मैं आपके कहनेसे आज शामको विवाह तो करा लूंगा, लेकिन सवेरे दीक्षा लिए बिना कभी न रहूंगा । यह बात ससुरालवालोंको भी कहलवा दी गई। एवं वे भी इस बात से सहमत हो गए। विवाह और चर्चा बड़ी धूमधामसे विवाह सम्पन्न हुआ। निन्नाणवे करोड़ स्वर्णमुद्राएँ दहेजमें प्राप्त हुई। जम्बूकुमार रंगमहलमें पहुँचे, लेकिन विवाहकी खशीका निशान तक नहीं था। वे सोच रहे थे कि कव यह रात पूरी हो और कब मैं संयम ग्रहण करू। आठों स्त्रियोंने अपने पतिको भोगोंकी ओर आकृष्ट करनेके लिए अनेक हाव-भाव-विलास-विभ्रम 'किए, एक-एकसे अद्भुत, युक्तियां लगाई, किन्तु जम्बूकुमारने उनको ऐसे वैराग्यपूर्ण जबाब दिये । जिनसे सारीकी सारी संयम लेनेको तैयार हो गई।

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