Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 62
________________ जैन-जीवन लिया। पता पाकर पाएटयों सहित श्रीकृष्ण लवणसमुद्रको लांच कर पातयोगरा पहुंचे और नरसिंहस्प धारकर द्रौपदीको छुड़ा लाए । किन्तु हास्यके वशीभूत गंगानदीमें नौका न भेजनके कारण कृष्ण क्रुद्ध हो गए और पाएटवोंको देशनिकाला देकर अभिमन्युके पुत्र परीक्षितको हस्तिनापुरका राजा बना दिया। श्रीकरणके कथनानुसार दक्षिासमुद्रके किनारे पाण्डवमथुरा घसाकर बहो पाएट्य अपने दुःखके दिन व्यतीत करने लगे। नमयानन्तर द्रौपदीने एक पुत्र हुया जिसका पाण्डुसेन नाम रखा गया। दीक्षा और निर्वाण ___एक दिन अचानक जराकुमारने थायर द्वारकादहन एवं कृष्णमरणके समाचार सुनाए । श्रीहरि जैसे-महापुरुषका ऐसे मरण सुन कर पाएडवोंको वैराग्य हो गया और अपने पुत्र पासनको राज्य दे कर द्रौपदीमारित पोंचों भाइयोंने दीक्षा ले ली एवं कर्मोका नाश करनेके लिए मास-मामरसमण तपस्या करते हुए विचरने लगे। एकदा वे भगवान अरिष्ट नेमि दर्शनार्थ निमलाभल जा रहे थे। रास्ते में हस्तकल्पपुर श्राया। मुनि माससमगरा पारणा करने तैयार हुए ही थे, उनमें पता मिला कि भगवाननं अनशन फर लिया है। अब तो प्रभुके दर्शन करके ही पास म ऐमी प्रतिक्षा करके उन्होंने शीघ्र ही विहार कर दिया, लेकिन उनके पहुंचने से पहले ही भगवान मोज पधार चुके चे। दर्शन नमोनर कारण यपनी प्रतिमा अनुमार मुनियोंने

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