Book Title: Jain Jivan
Author(s): Dhanrajmuni
Publisher: Chunnilal Bhomraj Bothra

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Page 72
________________ जैन-जीन होते, जीय तो प्रस्पी होने है, फिर उनके घुसनेसे कोठीमे हित कै हाँगे! ५, रागा- मैन एक चोरको कोठीम बन्द कर दिया, समयानन्तर देवा तो मरा या मिला । अब कहिए जीव कहाँमे निकला रास्ता तो वन्द था। गुर- जैसे वन्द मकानम बजाए गये ढोलका शब्द बाहर निकलता है, वैसे ही समझ लो। ५. रागा-यापके हिसाबसे जीव सब बराबर है, तो अचान "यादमीफे समान चालक तीर क्यों नहीं चला मस्ता ? गुग-- बालको हाथ-परमादि शरीरके अवयव अपूर्ण है। क्या तुम नहीं जानते कि बागाविद्यामें निपुगा पुरप भी धनुपके उपकरण अपूर्ण होने पर तीर अच्छी तरह नहीं चला मकता । १. रा-- चुदा श्रादनी जवान जितना योगा क्यों नहीं उठा नाता? गर-- सरे, अवयव जीर्ण होगा, इसीलिए गया पुरानी कारमं बात भी पूरा बोका उठा सकता है! ७. ग- दिन मनजीवित घोरको तोला 'पीर मार का फिर सोला, किन्तु उसका योमा पूर्षयत, तर कहिये स्यों नहीं पटा? pr- आरके नगन्य शरीर निकलने पर भी रसद टोला

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